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कर नई-नई देह धारण करते रहते हैं जैसे चींटी मर कर बैल बन जाती है, वैल मर कर मनुष्य की देह में आ जाता है, मनुष्य मर कर देव बन जाता है, इत्यादि इत्यादि । इसी चक्र को संसार में पावागमन कहा गया है। अनन्त काल तक जीव इसी तरह भांति-भांति की पर्यायों में घूम-घूम कर सुख-दुख भोगता रहता है।
जो महान् आत्मा अपने आप को शुद्ध कर कर्मों का नाश कर देती है और जो प्रात्मा का स्वभाव है यानि ज्ञान केवल उसी का स्वरूप रह जाती है वह केवल ज्ञानी हो कर संसार के आवागमन से छूट जाती है। उसी आत्मा को हम कहते हैं कि उस का मोक्ष हो गया और वह परमात्मा हो गई।