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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
[ १०७ हो है । इहा सूत्र विर्ष पहिले चकार कह्या, सो सर्व ही ए प्रमाद है, असा साधारण भाव जानने के अथि कह्या है । बहुरि दूसरा तथा शब्द कह्या, सो परस्पर समुदाय करने के अथि कह्या है। .
आगै इनि प्रमादनि के अन्य प्रकार करि पांच प्रकार है, तिनको नव गाथानि करि कहै है -
संखा तह पत्थारो, परियट्टण गट्ठ तह समुदिळें । एदे पंच पयारा, पमदसमुक्कित्तणे गया ॥३॥ संख्या तथा प्रस्तारः, परिवर्तन नष्टं तथा समुद्दिष्टम् ।
एते पंच प्रकाराः, प्रमादसमुत्कीर्तने ज्ञेयाः ॥३५॥ टीका - सख्या, प्रस्तार, परिवर्तन, नष्ट, समुद्दिष्ट ए पांच प्रकार प्रमादनि का व्याख्यान विर्ष जानना । तहा प्रमादनि का आलाप को कारणभूत जो अक्षसंचार के निमित्त का विशेष, सो संख्या है । बहुरि इनका स्थापन करना, सो प्रस्तार है । बहुरि अक्षसंचार परिवर्तन है । संख्या धरि अक्ष का ल्यावना नष्ट है । अक्ष धरि संख्या का ल्यावना समुद्दिष्ट है । इहा भंग को कहने का विधान, सो आलाप जानना । बहुरि भेद वा भंग का नाम अक्ष जानना । बहुरि एक भेद अनेक भंगनि विष क्रम तै पलटै, ताका नाम अक्षसचार जानना । बहुरि जेथवा भग होइ, तीहि प्रमाण का नाम संख्या जानना।
आगै विशेष संख्या की उत्पत्ति का अनुक्रम कहै है -
सव्वे पि पुब्वभंगा, उवरिमभंगेसु एक्कमेक्कसु । मेलति त्ति य कमसो, गुरिणदे उप्पज्जदे संखा ॥३६॥ सर्वेऽपि पूर्वभंगा, उपरिमभंगेषु एकैकेषु ।
मिलंति इति च क्रमशो,गुणिते उत्पद्यते संख्या ॥३६॥ टीका - सर्व ही पहिले भंग ऊपरि-ऊपरि के भंगनि विषै एक-एक विषै मिले है, संभव है । यातै क्रम करि परस्पर गुणै, विशेष संख्या उपज है । सोई कहिए है - पूर्व भंग विकथाप्रमाद च्यारि, ते ऊपरि के कषायप्रमादनि विर्षे एक-एक विष सभवै