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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ७२८
ही का अक लिख्या होइ, तहां तौ सो प्ररूपणा सर्व जाननी । जैसे पहिले कोठे में चौदह का अंक जहां लिख्या होइ, तहा सर्व गुणस्थान जानने । दूसरा कोठे विषै जहा चौदह का अंक लिख्या होइ, तहां सर्व जीवसमास जानने । असें ही तृतीयादि कोठेनि विषै जहां छह, दश, च्यारि, च्यारि, छह, पंद्रह, तीन, च्यारि, आठ, सात, च्यारि, छह, दोय, छह, दोय-दोय बारह के अंक लिखे होंइ, तहां अपने अपने कोठेनि विपैं सो सो प्ररूपणा सर्व जाननी । बहुरि जहां प्ररूपणा का प्रभाव होइ, तहां बिंदी लिखिए है । जैसे पहिले कोठे विषै जहां बिदी लिखी होइ, तहां गुणस्थान का प्रभाव जानना । दूसरा कोठा विषे जहां बिंदी लिखी होइ, तहां जीवसमास का प्रभाव जानना । असें अन्यत्र जानना । बहुरि जहां प्ररूपणा विषै केतेक भेद पाइए, तहां अपने अपने कोठानि विषै जितने भेद पाइए, तितनेका अंक लिखिए है । बहुरि तिन भेदनि के नाम जानने के प्रथि नाम का पहिला अक्षर वा पहिले दोय आदि ग्रक्षर वा दोय विशेषरण जानने के अथि दोऊ विशेषरणनि के आदि के दोय अक्षर वा तिन अक्षरनि के आगे अपनी संख्या के अंक लिखिए है, सोई कहिए है
जितने गुणस्थान पाइए, तितने का अंक पहिले कोठे में लिखिए है । तिस अंक के नीचे तिन गुणस्थाननि का नाम जानने के अथि तिनके नामनि के आदिअक्षर लिखिए है । सो आदि अक्षर की सहनानी ते सर्व नाम जानि लेना ।
तहां मिथ्यादृष्टि आदि गुरणस्थाननि के नाम की जैसी सहनानी । मि । सा । मिश्र | अवि । देश । प्र । अ । अपू । अनि । सू । उ । क्षी । स । अ ।
बहुरि जहा प्रादि के जैसा लिख्या होइ, तहा मिथ्यादृष्टि आदि जितने लिखे होंइ, तितने गुणस्थान जानने । बहुरि जैसे ही दूसरा कोठा विषे जीवसमास, सो जीवसमास दोय प्रकार पर्याप्त वा अपर्याप्त, तहां सहनानी अँसी प । अ । बहुरि तहां सूक्ष्म, बादर, वेद्री, तेद्री, चौद्री, यसंज्ञी, संजी की सहनानी जैसी सू । ना | बें । तें । चौ । अ । सं । तहा सूक्ष्म के पर्याप्त, अपर्याप्त दोऊ होंइ, तौ सहनानी जैसी सू २ पर्याप्त ही होइ तो सहनानी औसी सू प १ । अपर्याप्त ही होइ तो असी सून १ संज्ञी पर्याप्त अपर्याप्त की औसी सं २ पर्याप्त की जैसी सं प १ सज्ञी अपर्याप्त की असी सं अ १ सहनानी है । से ही चौरनि की जाननी । बहुरि जहां अपर्याप्त ही जीवसमास होइ, तहां 'अपर्याप्त' असा लिखिए है। जहां पर्याप्त ही होइ, तहां, 'पर्याप्त' असा लिखिए है । बहुरि प्रमत्त विषे ग्राहारक अपेक्षा, सयोगी विषे केवल