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[ परिफर्माप्टक सम्बन्धी प्रकरण का पांचवां भाग मात्र लब्ध प्रमाण आया। ताका नव मण अर च्यारि मरण का पाचवां भाग मात्र लब्धराशि भया ।
असे ही छह से आठ (६०८) सिद्ध छह महीना आठ समय विषै होइ, ती सर्व सिद्ध केते काल में होइ, असे त्रैराशिक करिए, तहां प्रमाण राशि छह से आठ, अर फलराशि छह मास आठ समयनि की संख्यात आवली, इच्छा राशि सिद्धराशि । तहां फल करि इच्छा को गुणि, प्रमाण का भाग दीए लब्धराशि संख्यात प्रावली करि गुणित सिद्ध राशि मात्र अतीत काल का प्रमाण आवै है । जैसे ही अन्यत्र जानना।
बहुरि केतेइक गणितनि का कथन आगे इस शास्त्र विष जहां प्रयोजन आवेगा तहा कहिएगा । जैसे श्रेणी व्यवहार का कथन गुणस्थानाधिकार विष करणनि का कथन करते कहिएगा । बहुरि एक बार, दोय बार आदि संकलन का कथन ज्ञानाधिकार विष पर्यायसमासज्ञान का कथन करते कहिएगा। वहुरि गोल आदि क्षेत्र व्यवहार का कथन जीवसमासादिक अधिकारनि विष कहिएगा । जैसे ही और भी गणितनि का जहां प्रयोजन होइगा तहां ही कथन करिएगा सो जानना । वहुरि अज्ञात राशि ल्यावने का विधान वा सुवर्णगणित आदि गणितनि का इहां प्रयोजन नाही, तातै तिनका इहां कथन न करिए है। जैसे गणित का कथन किया। ताकी यादि राखि जहां प्रयोजन होइ, तहा यथार्थरूप जानना । बहुरि जैसे ही इस शास्त्र विष करणसूत्रनि का, वा केई संज्ञानि का वा केई अर्थनि का स्वरूप एक वार जहां कह्या होइ, तहात यादि राखि, तिनका जहां प्रयोजन आवै, तहा तैसा ही स्वरूप जानना । या प्रकार श्रीगोम्मटसार शास्त्र की सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामा
भाषाटीका विष पीठिका समाप्त भई ।