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________________ ६७८ 1 [ गोम्मटसार जीव हाण्ड गाया ५६५ बहुरि अन्य बाईस वर्गणानि विषं भेद है। तहां जघन्य अर उत्कृष्ट भेद, सो कहिये है - जघन्य के ऊपरि एक एक परमाणू उत्कृप्ट का नीचा पर्यंत वधावने ते जेते भेद होहिं, तितने मध्य के भेद जानने । बहुरि संख्याताणुवर्गणा विर्षे जघन्य दोय अणूनि का स्कंध है । पर उत्कृष्ट उत्कृष्ट संख्यातें अणूनि का स्कंध है। बहुरि असंख्याताणुवर्गणा विर्षे जघन्य परीतासंख्यात परमाणूनि का स्कंध है, उत्कृष्ट उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात परमाणूनि का स्कंध है । इहां विवक्षित वर्गणा ल्यावने के निमित्त गुणकार का ज्ञान करना होइ तौ विवक्षित वर्गणा को ताके नीचे की वर्गणा का भाग दीए, जो प्रमाण आवै, सोई गुणकार का प्रमाण जानना । तिस गुणकार करि नीचे की वर्गणा कौं गुण, विवक्षित वर्गणा हो है । जैसे विवक्षित तीन अणू का स्कंध पर नीचे दोय परमाणु का स्कंध, तहां तीन को दोय का भाग दीए ड्योढ पाया; सोई गुणकार है । दोय को ड्योढ करि गुरिणए, तब तीन होइ; जैसे सर्वत्र जानना । बहुरि इहां संख्याताणु, असंख्याताणु वर्गणा विष जघन्य का भाग उत्कृष्ट कौं दीएं, जो प्रमाण आवै, सोई जघन्य का गुणकार जानना । इस गुणकार करि जघन्य कौ गुणे, उत्कृष्ट भेद हो है । बहुरि ताके ऊपरि अनंताणुवर्गणा विर्षे उत्कृष्ट असंख्याताणु वर्गणा ते एक परमाणू अधिक भये जघन्य भेद हो है । अर जघन्य को सिद्ध राशि का अनंतवां भाग मात्र जो अनत, ताकरि गुण, उत्कृष्ट भेद हो है । बहुरि ताके ऊपरि आहार वर्गणा विर्ष उत्कृष्ट अनंताणुवर्गणा ते एक परमाणू अधिक भए जघन्य भेद हो है। बहुरि इस जघन्य कौं सिद्धराशि का अनंतवां भाग मात्र जो अनत, ताका भाग दीये, जो प्रमाण आवै, तितने जघन्य से अधिक भये उत्कृष्ट भेद हो है। बहुरि ताके ऊपरि अग्राह्यवर्गणा है । तीहिं विषै उत्कृष्ट आहारवर्गणा ते एक परमाणू अधिक भए, जघन्य भेद हो है। बहुरि जघन्य भेद कौं सिद्धराशि का अनंतवां भागमात्र जो अनंत करि गुणै उत्कृष्ट भेद हो है। १घ प्रति मे यहा 'जघन्य शब्द अधिक मिलता है।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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