________________
६४८ ]
[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया ५६० ___ यंत्र विष अगृहीत की सहनानी तो विदी ।।०॥ जाननी अरु मिश्र की सहनानी हंसपद ॥+|| जाननी । अर गृहीत की सहनानी एक का अंक ॥१॥ जाननी । अर दोय बार लिखने ते अनंत बार जानि लेना ।
द्रव्य परिवर्तन का यंत्र
.
० ० + + + + +१ ११ +
• + + + + +१ १ १ +
.++
० ० १ ० ० + ० ० + ++ १ ++ ++ ++ ++ १] ++ १/ १ १ ० १ १ + | ११ +
० ० १ ++ १ ++ . १ १ .
-
.
-
.
तहां विवक्षित नोकर्म पुद्गल परिवर्तन का पहिले समय तै लगाइ, प्रथम बार समयप्रबद्ध विर्षे अगृहीत का ग्रहण करै, दूसरी बार अगृहीत ही का ग्रहण करे, तीसरी बार अगृहीत ही का ग्रहण करै जैसे निरंतर अनंत बार अगृहीत का ग्रहण होइ निवरै तब एक बार मिश्र का ग्रहण करै । याहीतें यंत्र विर्ष पहिले कोठा विर्षे दोय बार बिदी एक बार हंसपद लिख्या ।
बहुरि तहां पीछे तैसे ही निरंतर अनंत बार अगृहीत का ग्रहण करि एक बार मिश्र का ग्रहण करै, असे ही अनुक्रमते अनंत अनंत बार अगृहीत का ग्रहण करि करि एक - एक बार मिश्र का ग्रहण करै; असे ही मिश्र का भी ग्रहण अनंत बार हो है । याहीतै अनत बार की सहनानी के निमित्त यत्र विर्षे जैसा पहिला कोठा था, तैसाही दूसरा कोठा लिख्या ।
___ बहुरि तहा पीछे तैसे ही निरतर अनंत बार अगृहीत का ग्रहण करि एक वार गृहीत का ग्रहण कर, याहीतै तीसरा कोठा विषै दोय बिदी पर एक का अक लिख्या । बहुरि अगृहीत ग्रहण आदि अनुक्रम तै जसै यह एक बार गृहीत ग्रहण भया, तैसे ही अनुक्रम ते एक - एक बार गृहीत ग्रहण करि अनंत बार गृहीत ग्रहण हो है । याहीत जसै तीन कोठे पहिले लिखे थे, तैसे ही अनंत की सहनानी के निमित्त दसरा तीन कोठे लिखे, सो असे होते प्रथम परिवर्तन भया । तातें इतना प्रथमपंक्ति विप लिखा।
अव दूसरी पंक्ति का अर्थ दिखाइए है - पूर्वोक्त अनुक्रम भए पीछे निरंतर अनंत बार मिश्र ग्रहण करै, तब एक बार अगृहीत ग्रहण करै । यात प्रथम कोठा विर्षे