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________________ [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ५५२-५५३ ६४० ] टीका - कृष्ण आदि छहौ लेश्यानि का काल नाना जीवनि की अपेक्षा सर्वाद्धा कहिये सर्व काल है । बहुरि एक जीव अपेक्षा छहौ लेश्यानि का जघन्यकाल तौ अतमुहूर्त प्रमाण जानना। उवहीणं तेत्तीसं, सत्तरसत्तेव होंति दो चेव । अट्ठारस तेत्तीसा, उक्कस्सा होंति अदिरेया ५५२॥ उदधीनां त्रयस्त्रिंशत्, सप्तदश सप्तैव भवंति द्वौ चैव । अष्टादश त्रयस्त्रिशत्, उत्कृष्टा भवंति अतिरेकाः ॥५५२।। टीका - बहरि उत्कृष्ट काल कृष्णलेश्या का तेतीस सागर, 'नीललेश्या का सतरह सागर, कपोतलेश्या का सात सागर, तेजोलेश्या का दोय सागर, पद्मलेश्या का अठारह सागर, शुक्ललेश्या का तेतीस सागर किछ किछ अधिक जानना । सो अधिक का प्रमाण कितना ? सो कहैं है - यहु उत्कृष्ट काल नारक वा देवनि की अपेक्षा कहा है । सो नारकी पर देव जिस पर्याय ते आनि उपजै, तिस पर्याय का अंत का अंतर्मुहूर्त काल बहुरि देव नारक पर्याय छोडि जहां उपजै, तहां आदि विषै अंतर्मुहूर्त काल मात्र सोई लेश्या हो है । तातै पूर्वोक्त काल से छहौं लेश्यानि का काल वि. दोय दोय अंतर्मुहूर्त अधिक जानना । बहुरि तेजोलेश्या अर पद्मलेश्या का काल विर्षे किंचित् ऊन आधा सागर भी अधिक जानना, जाते जाकै आयु का अपवर्तन घात भया असा जो घातायुष्क सम्यग्दृष्टी, ताकै अतर्मुहुर्त घाटि आधा सागर आयु बधता हो है जैसे सौधर्म-ईशान विष दोय सागर का आयु कह्या है; ताहां घातायुष्क सम्यग्दृष्टी के अंतर्मुहूर्त घाटि अढाई सागर भी आयु हो है; जैसे ऊपर भी जानना । बहुरि जैसे ही मिथ्यादृप्टि घातायुष्क के पल्य का असंख्यातवां भाग प्रमाण आयु बधता हो है; सो यह अधिकपना सौधर्म ते लगाइ सहस्रार स्वर्ग पर्यंत जानना । ऊपर घातायुष्क का उपजना नाही, तातै तहा जो आयु का प्रमाण कह्या है, तितना ही हो है; जैसे अधिक काल का प्रमाण जानना । इति कालाधिकार. । आगे अंतर अधिकार दोय गाथानि करि कहै हैअंतरमवरुक्कस्सं, किण्हतियाणं मुहत्तअंतं तु । उवहीणं तेत्तीसं, अहियं होदि ति णिदिळें ॥५५३॥
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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