________________
सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
[ ५७३
जे निषेक, तिनिका उदय नाही, सोई उपशम । बहुरिं बादर संज्वलन के जे देश घातिया स्पर्धक संयम के अविरोधी तिनिका उदय, जैसे क्षयोपशम होते सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि ए तीन सयम हो है ।
बहुरि सूक्ष्मकृष्टि करने रूपं जो अनिवृत्तिकरण, तीहि पर्यंत बादर सज्वलन के उदय करि पूर्वकरण अर अनिवृत्तिकरण गुणस्थाननि विषै सामायिक अर छेदोपस्थापना दोय ही संयम हो है । बहुरि सूक्ष्मकृष्टि को प्राप्त हवा, असा जो सज्वलन लोभ, ताके उदयं करि दशवे गुणस्थान सूक्ष्मसापराय सयम हो है ।
बहुरि सर्व चारित्र मोहनीय कर्म के उपशमतै वा क्षय ते यथाख्यात संयम हो है । तहा ग्यारहवे गुणस्थान उपशम यथाख्यात हो है । बारहवै, तेरहवे, चौदहवे क्षायिक यथाख्यात हो है ।
इस ही अर्थ कौं दोय गाथानि करि कहैं है
-
बादरसंजलदये, बादरसंजमतियं खु परिहारो । पद्मदिरे समुदये, सुमो संजमगुणी होदि ॥ ४६७॥
बादरज्वलनोदये, बादरसयमत्रिकं खलु परिहारः । प्रमत्तेतरस्मिन् सूक्ष्मोदये सूक्ष्मः संयमगुणो भवति ॥४६७॥
टीका - बादर संज्वलन का देशघाती स्पर्धक ते संयम के विरोधी नाही, तिनके उदय करि सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि ए तीन सयम हो है । तहा परिहारविशुद्धि तौ प्रमत्त अप्रमत्त दोय गुणस्थाननि विषै ही हो है । और सामायिक छेदोपस्थापना प्रमत्तादि अनिवृत्तिकरण पर्यत च्यारि गुणस्थाननि विषै हो है । बहुरि सूक्ष्मकृष्टि को प्राप्त हूवा सज्वलन लोभ, ताके उदय करि सूक्ष्मसापराय नामा सयम गुण हो है ।
जहखादसंजमो पुरण, उवसमदो होदि मोहणीयस्स ।
arat far सोयिमा, होदि ति जिरोहि णिदिट्ठ ॥४६८ ॥
य
यथाख्यातसंयमः पुनः, उपशमतो भवति मोहनीयस्य ।
क्षयतोऽपि च स नियमात् भवतीति जिनैनिर्दिष्टम् ॥४६८ ॥