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[ गोम्मटसार जोयकाण्ड गापा ४२३-४२४ ५५४ का प्रमाण कह्या है, तातै जघन्य देशावधि ज्ञान का विपयभूत भाव का प्रमाण असंख्यात गुणा घाटि जानना।
सव्वोहि त्ति य कमसो, आवलिअसंखभागगुणिदकमा। दवारणं भावाणं, पदसंखा सरिसगा होति ॥४२३॥
सर्वावधिरिति च क्रमशः, आवल्यसंख्यभागगुरिणतक्रमाः ।
द्रव्यानां भावानां, पदसंख्याः सदृशका भवंति ॥४२३।। टीका - देशावधि का विषयभूत द्रव्य की अपेक्षा जहा जघन्य भेद है, तहां ही द्रव्य का पर्याय रूप भाव की अपेक्षा आवली का असंख्यातवा भाग प्रमाण भाव का जानने रूप जघन्य भेद हो है । बहुरि तहां द्रव्य की अपेक्षा दूसरा भेद हो है। तहा ही भाव की अपेक्षा तिस प्रथम भेद का प्रावली का असंख्यातवां भाग प्रमाण करि गुण, जो प्रमाण होइ, तीहि प्रमाण भाव को जानने रूप दूसरा भेद हो है । बहुरि जहा द्रव्य की अपेक्षा तीसरा भेद हो है; तहा ही भाव की अपेक्षा तिस दूसरा भेद ते पावली का असख्यातवां भाग गुणा तीसरा भेद हो है । जैसे ही क्रम ते सर्वावधि पर्यत जानना । अवधिज्ञान के जेते भेद द्रव्य की अपेक्षा है, तेते ही भेद भाव की अपेक्षा है । जैसे द्रव्य की अपेक्षा पूर्व भेद संबंधी द्रव्य को ध्र वहार का भाग दीए, उत्तर भेद सबधी द्रव्य भया, तैसै भाव की अपेक्षा पूर्व भेद सबधी भाव को आवली का असख्यातवा भाग करि गुण, उत्तर भेद सबधी भाव भया। तातै द्रव्य की अपेक्षा अर भाव की अपेक्षा स्थानकनि की सख्या समान है ।
आगे नारक गति विषै अवधिज्ञान का विषभूत क्षेत्र का परिमाण कहै है ~~. सत्तमखिदिम्मि कोसं, कोसस्सद्धं पवढदे ताव । जाव य पढमे णिरये, जोयणमेक्कं हवे पुण्णं ॥४२४॥
सप्तमक्षितौ कोशं, कोशस्याधि प्रवर्धते तावत् ।
यावच्च प्रथमे निरये, योजनमेकं भवेत् पूर्णम् ॥४२४॥ टीका - सातवी नरक पृथ्वी विर्ष अवधिज्ञान का विषयभूत क्षेत्र एक कोश है । बहुरि आधा आधा कोश तहां ताई बधै, जहां पहले नरक संपूर्ण एक योजन