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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
संखातीदा समया, पढसे पव्वभूमि उभयदो वड्ढी । खेत्तं कालं श्रस्सिय पढमादी कंडये वोच्छं ॥ ४०३ ॥
संख्यातीताः समयाः, प्रथमे पर्वे उभयतो वृद्धिः । क्षेत्र कालमाश्रित्य प्रथमादीनि कांडकानि वक्ष्ये ||४०३ ||
टीका
कहिये ध्रु वरूप - अध्रु वरूप दोऊ वृद्धि को लीएं असंख्याते समय हो है ।
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असे होते प्रथम पूर्व कहिए पहला कांडक, तीहि विषे उभयतः
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भावार्थ प्रथम काss विषै जघन्य काल का परिमाण ते पूर्वोक्त प्रकार ध्रुववृद्धि करि वा अध्रुववृद्धि करि एक एक समयप्रबद्ध ते असख्यात समय बधै हैं । कितने है ? प्रथम काडक का उत्कृष्ट काल के समयनि का प्रमाण मे स्यों जघन्य काल के समयनि का प्रमाण घटाए, जो प्रमाण अवशेष रहे, तितने असंख्याते समय प्रथम काsक विषै बधै है । जैसे ही प्रथम कांडक का उत्कृष्ट क्षेत्र के प्रदेशनि का प्रमाण मे स्यो जघन्य क्षेत्र के प्रदेशनि का प्रमाण घटाएं, जो प्रमाण अवशेष रहै, तितने प्रदेश प्रथम काडकनि विषै पूर्वोक्त प्रकार करि बधै है । अब जो वृद्धिरूप समयनि का प्रमाण कह्या, सो जघन्य काल आवली का असख्यातवा भागमात्र तीहि विषै जोडिए, तब प्रथम कांडक का अत भेद विषै आवली का असख्यातवां भाग प्रमाण काल हो है । बहुरि वृद्धिरूप प्रदेशनि का परिमाण कौ जघन्य क्षेत्र घनागुल का असख्यातवां भागमात्र तीहि विषे मिलाएं, प्रथम काडक का अत भेद विषै घना - गुल का असख्यातवा १ भाग प्रमाण क्षेत्र हो है ।
विषयभूत क्षेत्र काल अपेक्षा देशावधि के उगरणीस काडक कहूगा, औसा प्राचार्य प्रतिज्ञा करी है
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अंगुलमावलियाए, भागमसंखेज्जदो वि संखेज्जो । गुलमावलियंतो, आवलियं चांगुलपुधत्तं ॥४०४॥
गुलावल्यो:, भागोऽसंख्येयोऽपि संख्येयः । अंगुलमावल्यंत, प्रावलिकाश्चांगुलपृथक्त्वम् ||४०४॥
१. ग प्रति मे सख्यात है ।