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________________ म्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका] होदि अणंतिमभागो, तग्गुणगारो वि देसओहिस्स। दोऊरण दवभेदपमारणधुवहारसंवग्गो ॥३८६॥ ध्रुवहारस्य प्रमाणं, सिद्धानंतिमप्रमाणमात्रमपि । समयप्रबद्धनिमित्तं, कार्मणवर्गणागुणतस्तु ॥३८८॥ भवत्यनंतिमभागस्तद्गुणकारोऽपि देशावधेः । द्वच नद्रव्यभेदप्रमाणध्रुवहारसंवर्गः ॥३८९॥ टीका - ध्रुवहार का प्रमाण सिद्धराशि के अनंतवे भागमात्र है । तथापि अवधि का विषयभूत समयप्रबद्ध का प्रमाण ल्यावने के निमित्त जो कार्माण वर्गणा का गुणकार कह्या, ताके अनंतवे भागमात्र जानना । सो तिस कार्माण वर्गणा के गुणकार का प्रमाण कितना है ? सो कहिए है - देशावधिज्ञान का विषयभूत द्रव्य की अपेक्षा जितने भेद है, तिनमें दोय घटाएं, जो प्रमाण रहै, तितना ध्रुवहार मांडि, परस्पर गुणन कीएं, जो प्रमाण आवै, तितना कार्माण वर्गणा का गुणकार जानना । जैसा प्रमाण कैसे कह्या? सो कहिए है - देशावधिज्ञान का विषयभूत द्रव्य की रचना विष उत्कृष्ट अंत का जो भेद, ताका विषय कार्माण वर्गणा को एक बार ध्रुवहार का भाग दीए, जो प्रमाण होइ, तितना जानना । बहुरि ताके नीचे द्विचरम भेद, ताका विषय, कार्माण वर्गणा प्रमाण जानना । बहुरि ताके नीचे त्रिचरम भेद, ताका विषय कार्माण वर्गणा को एक बार ध्र वभागहार तै गुरणे, जो प्रमाण होइ, तितना जानना । बहुरि ताके नीचे दोय बार ध्र वभागहार करि कार्माण वर्गणा को गुरिणए, तब चतुर्थ चरम भेद होइ । जैसे ही एक एक बार अधिक ध्रुवहार करि कार्माण वर्गणा को गुण ते, दोय घाटि देशावधि के द्रव्यभेद प्रमाण ध्रुवहारनि के परस्पर गुणन ते जो गुणकार का प्रमाण भया, ताकरि कार्माणवर्गणा को गुण, जो प्रमाण भया, सोई जघन्य देशावधिज्ञान का विषयभूत लोक करि भाजित नोकर्म औदारिक का सचयमात्र द्रव्य का परिमाण जानना । इहा उत्कृष्ट भेद ते लगाइ जघन्य भेद पर्यंत रचना कही, तातं औसै गुणकार का प्रमाण कह्या है । बहुरि जो जघन्य ते लगाइ, उत्कृप्ट पर्यंत रचना कीजिए, तो क्रम ते ध्र वहार के भाग देते जाइए, अंत का भेद विप कार्माण वर्गणा को एक बार ध्रुवहार का भाग दीए, जो प्रमाण आवै, तितना द्रव्य प्रमाण होइ इस
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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