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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
अवरद्रव्यादुपरिमद्रव्यविकल्पाय भवति ध्रुवहारः ।
सिद्धानंतिमभागः, अभव्यसिद्धादनंतगुणः ॥३८४॥ टीका - जघन्य देशावधि ज्ञान का विषयभूत द्रव्य ते ऊपरि द्वितीयादि अवधि ज्ञान के भेद का विषयभूत द्रव्य का प्रमाण ल्यावने के अर्थि ध्रुवहार जानना । सर्व भेदनि विष जिस भागहार का भाग दीएं प्रमाण आवै, सो ध्रुव भागहार कहिए । जैसे इस जघन्य देशावधिज्ञान का विषयभूत द्रव्य को ध्र वभागहार के प्रमाण का भाग दीएं, जो एक भाग का प्रमाण आवै, सो देशावधि का द्रव्य सबधी दूसरा भेद का विषयभूत द्रव्य का प्रमाण जानना । याको ध्र वहार का भाग दीए, जो एक भाग का प्रमाण आवै; सो देशावधि के तीसरे भेद का विषयभूत द्रव्य जानना । जैसे सर्वावधि पर्यंत जानना । पहले पहले घने परमारणनि का स्कंधरूप द्रव्य को ध्रुवभागहार का भाग दीएं, पीछे पीछे एक भागमात्र थोरे परमाणनि का स्कंध आवै, सो पूर्वस्कंध ते सूक्ष्म स्कंध होइ, सो ज्यों ज्यों सूक्ष्म को जाने, त्यो त्यो ज्ञान की अधिकता कहिए है ; जातै सूक्ष्म को जाने स्थूल का तो जानना सहज ही हो है । बहुरि जो वह ध्र वभागहार कहा था, ताका प्रमाण सिद्धराशि को अनंत का भाग दीजिए, ताके एक भाग प्रमारण है। अथवा अभव्य सिद्धराशि को अनंत ते गुणिए, तीहि प्रमाण है।
धुवहारकम्मवग्गरणगुणगारं कम्मवग्गणं गणिदे। समयपबद्धपमाणं, जाणिज्जो ओहिविसयहि ॥३८५॥
ध्रुवहारकार्मणवर्गणागुरणकारं कार्मरणवर्गणां गुरिणते ।
समयप्रबद्धप्रमारणं, ज्ञातव्यमवधिविषये ॥३८५॥ टीका - देशावधिज्ञान का विषयभूत द्रव्य की अपेक्षा जितने भेद होइ, तितने में सौ घटाइए, जो प्रमाण होइ, तितना ध्र वहार माडि, परस्पर गुरिण, जो प्रमाण होइ, सो कार्माण वर्गणा का गुणकार जानना। तीहि कारिण वर्गणा का गुणकार करि कार्माण वर्गणा को गुणे, जो प्रमाण होइ, सो अवधिज्ञान का विपय विष समयप्रबद्ध का प्रमाण जानना । जो जघन्य देशावधिज्ञान का विपयभूत द्रव्य कह्या था, तिसहीका नाम इहा समयप्रबद्ध जानना । इसका विशेष आगे कहैगे।
ध्रुवहार का प्रमाण सामान्यपनै सिद्धराशि के अनतवे भागमात्र कह्या, अव विशेषपने ध्रुवहार का प्रमाण कहै है -