________________
५०४ ]
[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया ३५८ ३५९-३६० असे आचार नै आदि देकरि विपाक सूत्र पर्यत ग्यारह अंग, तिनिके पदनि की संख्या कहिए है ।
अट्ठारस छत्तीसं, बादालं अडकडी अड बि छप्पण्णं । सत्तरि अट्ठावीसं, चोद्दालं सोलससहस्सा ॥३५८॥ इगि-दुग-पंचेयारं, तिकीसतिणउदिलक्ख तुरियादी। चुलसीदिरणक्खमेया, कोडी य विवागसूत्तम्हि ॥३५॥
अष्टादश षट्त्रिंशत्, द्वाचत्वारिंशत् अष्टकृतिः अष्टद्विषट्पंचाशत् । सप्ततिः अष्टाविंशतिः, चतुश्चत्वारिंशत् षोडश सहस्राणि ॥३८॥ एकद्विपंचैकादशत्रयोविंशतिद्विविनवतिलक्षं चतुर्थादिषु ।
चतुरशीतिलक्षमेका, कोटिश्च विपाकसूत्रे ॥३५९॥ टीका- प्रथम गाथा विर्ष अठारह आदि हजार कहे । बहुरि दूसरी गाथा विष चौथा अग आदि अंगनिविषे एकादिक लाख सहित हजार कहे। अर विपाकसूत्र का जुदा वर्णन कीया । अब इनि गाथानि के अनुसारि एकादश अंगनि की पदनि की सख्या कहिये है । आचाराग विष पद अठारह हजार(१८०००), सूत्रकृताग विष पद छत्तीस हजार (३६०००), स्थानाग विष बियालीस, हजार (४२०००), समवायांग विप एक लाख अर आठ की कृति चौसठि हजार (१६४०००), व्याख्याप्रज्ञप्ति विपै दोय लाख अट्ठाईस हजार (२२८०००), ज्ञातृकथा अग विषे पांच लाख छप्पन हजार, (५५६०००), उपासकाध्ययन अग विषे ग्यारह लाख सत्तरि हजार (११७००००), अतकृतदशाग विषे तेईस लाख अट्ठाईस हजार (२३२८०००), अनुत्तरौपपादक दशांग विष बाणवै लाख चवालीस हजार (६२४४०००), प्रश्न व्याकरण अंग विर्ष तिराणवै लाख सोलह हजार (६३१६०००), विपाकसूत्र अग विषै एक कोडि चौरासी लाख (१८४४००००) असे एकादश अगनि विर्षे पदनि की सख्या जाननी ।
वापणनरनोनानं, एयारंजुगे दी हु वादम्हि । -.-.. कनजतजमताननम, जनकनजयसीम वाहिरे वण्णा ॥३६०॥
वापणनरनोनानं, एकदशांगे युतिर्हि वादे । कनजतजमताननमं जनकनजयसीम बाह्ये वर्णाः ॥३६०॥