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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ३३६-३४०
का स्वरूप विस्तार पर्ने निरुपण करनहारा जो प्रतिपत्तिपक ग्रंथ, ताके सुनने ते जो अर्थज्ञान भया, ताकौ प्रतिपत्तिक श्रुतज्ञान कहिए ।
अनुयोग श्रुतज्ञान की प्ररूप हैं।
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चउगइ- सरूवपरूवय- पडिवत्तीदो दु उवरि पुव्वं वा । वणे संखेज्जे, पडिवत्तीउड्ढम्हि प्रणियोगं ॥ ३३६ ॥ १
चतुर्गतिस्वरूपप्ररूपकप्रतिपत्तितस्तु उपरि पूर्व वा । वर्णे संख्याते, प्रतिपत्तिवृद्धे अनुयोगं ॥ ३३९॥
टीका - च्यारि गति के स्वरूप का निरूपण करणहारा प्रतिपत्तिक श्रुतज्ञान के ऊपरि प्रत्येक एक एक अक्षर की वृद्धि लीये संख्यात हजार पदनि का समुदायरूप सख्यात हजार संघात अर संख्यात हजार संघातनि का समूह प्रतिपत्तिक, सो जैसे प्रतिपत्तिक सख्यात हजार होइ; तिनिविषे एक अक्षर घटाइये तहां पर्यंत प्रतिपत्तिक समास श्रुतज्ञान के भेद भए । बहुरि तिसका अंत भेद विषै वह एक अक्षर मिलाये, अनुयोग नामा श्रुतज्ञान भया, सो चौदै मार्गणा के स्वरूप का प्रतिपादक अनुयोग नामा श्रुत, ताके सुनने ते जो अर्थज्ञान भया, ताको अनुयोग नामा श्रुतज्ञान कहिए ।
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आगे प्राभृतप्राभृतक श्रुतज्ञान को दोय गाथानि करि कहै है - चोद्दस-मग्गण-संजुद-अणियोगादुवरि वड्ढिदे वण्णे । चउरादी - श्रणियोगे दुगवारं पाहुडं होदि ॥ ३४० ॥२
चतुर्दश मार्गणासंयुतानुयोगादुपरि वर्धिते वरों । चतुराद्यनुयोगे द्विकवारं प्राभृतं भवति ॥ ३४० ॥
टीका - चौदह मार्गणा करि सयुक्त जो अनुयोग, ताके ऊपरि प्रत्येक एक एक अक्षर की वृद्धि करि संयुक्त पद संघात प्रतिपत्तिक, इनिको पूर्वोक्त अनुक्रम तैः वृद्धि होते च्यारि यदि अनुयोगनि की वृद्धि विषै एक अक्षर घटाइये । तहा पर्यंत अनुयोग समास के भेद भए । बहुरि तिसका अत भेद विषै वह एक अक्षर मिलाये, प्राभृत प्राभृतक नामा श्रुतज्ञान हो है ।
१ पट्यडागम - घवला पुस्तक ६, पृष्ठ २४ की टीका ।
२ पट्टागम - घवला पुस्तक ६, पृष्ठ २४ की टीका ।