________________
४८२ ]
[ गोम्मटमार जीवकाण्ड गाया ३३६ तितने है । बहुरि इसके अनंतरि उत्कृष्ट अक्षर समास के विपै एक अक्षर बधत पदनामा श्रुतज्ञान हो है।
सोलस-सय-चउतीसा, कोडी तियसीदिलक्खयं चेव । सत्तसहस्साट्ठसया, अट्ठासीदी य पदवण्णा ॥३३६॥
षोडशशतचतुर्विंशत्कोटयः त्र्यशीतिलक्षकं चैव ।
सप्तसहस्राण्यष्टशतानि अष्टाशीतिश्च पदवर्णाः ॥३३६॥ टीका - पद तीन प्रकार है - अर्थपद, प्रमाणपद, मध्यमपद ।
तहां निहिं अक्षर समूह करि विवक्षित अर्थ जानिये, सो तौ अर्थपद कहिये । जैसे कहा कि 'गामभ्याज शुक्लां दंडेन' इहां इस शब्द के च्यारि पद हैं - १. गां, २. अभ्याज, ३. शुक्लां, ४. दंडेन । ये च्यारि पद भए । अर्थ याका यहु - जो गाय को घेरि, सुफेद को दंड करि । असे कहा कि 'अग्निमानय' इहां दोय पद भए । अग्निं, आनय । अर्थ यहु जो - अग्नि को ल्याव । औसै विवक्षित अर्थ के अर्थी एक, दोय आदि अक्षरनि का समूह, ताको अर्थपद कहिये ।
___ बहुरि प्रमाण जो संख्या, तिहिने लीएं, जो पद कहिये अक्षर समूह, ताको प्रमाण पद कहिये । जैसै अनुष्टुप छद के च्यारि पद, तहां एक पद के आठ अक्षर होइ । 'नमः श्रीवर्धमानाय' यह एक पद भया । याका अर्थ यह जो श्रीवर्धमान स्वामी के अथि नमस्कार होह; असे प्रमाणपद जानना ।
__ बहुरि सोलासै चौतीस कोडि तियासी लाख सात हजार आठसै अठ्यासी (१६३४८३०७८८८) गाथा विषे कहे अपुनरुक्त अक्षर, तिनिका समूह सो मध्यमपद कहिये । इनिविषै अर्थ पद अर प्रमाण पद तौ हीन - अधिक अक्षरनि का प्रमाण कौं लीएं, लोकव्यवहार करि ग्रहण कीएं है । तातै लोकोत्तर परमागम विर्ष गाथा विष कही जो सख्या, तीहिं विषै वर्तमान जो मध्यमपद, ताहीका ग्रहण जानना।
आगे सघात नामा श्रुतज्ञान को प्ररूप है -
२. पटपडागम - धवला पुस्तक ६, पृष्ठ २३ की टीका ।