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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
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सात का अक ( ७ ), अनंत गुणवृद्धि की आठ का अक (द), असे ए सहनानी जाननी ।
टीका पूर्ववृद्धि जो पहिली पहिली वृद्धि, सो सूच्यंगुल का असख्यातवा भाग प्रमाण होइ; तब एक एक बार परवृद्धि कहिए पिछली पिछली वृद्धि होइ, से बार बार अंत की वृद्धि, जो अनतगुरण वृद्धि तीहि पर्यत हो है; असा जानना ।
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अब याका अर्थ यत्र द्वार करि दिखाइए है । तहां यत्र विषे अनतभागादिक की उकार आदि सदृष्टि कही थी, सो लिखिए है ।
वृद्धि का यंत्र
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श्रंगुलप्रसंखभागे, पुण्वगवड्ढीगदे दु परवड्ढी ।
एक्कं वारं होदि हु, पुणो पुणो चरिम उड्ढि त्ती ॥ ३२६॥
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अंगुला सख्यात भागे, पूर्वगवृद्धिगतेतु परवृद्धिः ।
एकं वारं भवति हि पुनः पुनः चरमवृद्धिरिति ॥ ३२६ ॥
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पर्याय समास ज्ञान विषे
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बहुरि सूच्यगुल का असख्यातवा भाग प्रमाण बार की जायगा दोय बार लिखिए है । सो इहा पर्याय नाम श्रुतज्ञान का भेद, तातै अनत भाग वृद्धि लिए पर्याय समास नामा श्रुतज्ञान का प्रथम भेद हो है । बहुरि इस प्रथम भेद ते अनत भागवृद्धि लए पर्याय समास का दूसरा भेद हो है । जैसे सूच्यगुल का असख्यातवा भाग प्रभारण अनंत भागवृद्धि होइ, तब एक बार प्रसख्यात भागवृद्धि होइ । इहा अनत भागवृद्धि पहिलै कही थी, ताते पूर्व कहिए । अर असख्यात भागवृद्धि वाके पीछे कही थो, ताते याकी पर कहिए । सो इहा यत्र विषै प्रथम पक्ति का प्रथम कोष्ठ विषै दो बार उकार लिख्या, सो तो सूच्यगुल का असख्यातवा भाग प्रमारण अनत भाग