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________________ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ] [ ४५७ सात का अक ( ७ ), अनंत गुणवृद्धि की आठ का अक (द), असे ए सहनानी जाननी । टीका पूर्ववृद्धि जो पहिली पहिली वृद्धि, सो सूच्यंगुल का असख्यातवा भाग प्रमाण होइ; तब एक एक बार परवृद्धि कहिए पिछली पिछली वृद्धि होइ, से बार बार अंत की वृद्धि, जो अनतगुरण वृद्धि तीहि पर्यत हो है; असा जानना । उ उ ४ उ उ ४ अब याका अर्थ यत्र द्वार करि दिखाइए है । तहां यत्र विषे अनतभागादिक की उकार आदि सदृष्टि कही थी, सो लिखिए है । वृद्धि का यंत्र उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ४ श्रंगुलप्रसंखभागे, पुण्वगवड्ढीगदे दु परवड्ढी । एक्कं वारं होदि हु, पुणो पुणो चरिम उड्ढि त्ती ॥ ३२६॥ उ उ ४ उ उ ४ - उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ | उ उ ४ अंगुला सख्यात भागे, पूर्वगवृद्धिगतेतु परवृद्धिः । एकं वारं भवति हि पुनः पुनः चरमवृद्धिरिति ॥ ३२६ ॥ उ उ४ उ उ ४ उ उ ४ पर्याय समास ज्ञान विषे उ उ ५ उ उ ५ उ उ ५ उ उ ५ उ उ ५ उ उ ५ उ उ ५ उ उ ५ उ उ ५ उ उ ४ उ उ४ उ उ ४ उ उ उ उ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ५ उ उ ५ उ उ ५ उ उ ५ उ उ ५ उ उ ५ उ उ ५ | उ उ ५ उ उ ५ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ६ उ उ ६ उ उ ७ उ उ ६ उ उ ६ उ उ ७ उ उ ६ उ उ ६ उ उ ८ बहुरि सूच्यगुल का असख्यातवा भाग प्रमाण बार की जायगा दोय बार लिखिए है । सो इहा पर्याय नाम श्रुतज्ञान का भेद, तातै अनत भाग वृद्धि लिए पर्याय समास नामा श्रुतज्ञान का प्रथम भेद हो है । बहुरि इस प्रथम भेद ते अनत भागवृद्धि लए पर्याय समास का दूसरा भेद हो है । जैसे सूच्यगुल का असख्यातवा भाग प्रभारण अनंत भागवृद्धि होइ, तब एक बार प्रसख्यात भागवृद्धि होइ । इहा अनत भागवृद्धि पहिलै कही थी, ताते पूर्व कहिए । अर असख्यात भागवृद्धि वाके पीछे कही थो, ताते याकी पर कहिए । सो इहा यत्र विषै प्रथम पक्ति का प्रथम कोष्ठ विषै दो बार उकार लिख्या, सो तो सूच्यगुल का असख्यातवा भाग प्रमारण अनत भाग
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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