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[ गोम्मटसार फर्मकाण्ड सम्बन्धी प्रकरण सत्त्वस्थान संभव, अर जिस-जिस उदयस्थान विपं जो-जो वधस्थान वा सत्त्वस्थान संभवै, अर जिस-जिस सत्त्वस्थान विपै जो-जो वधस्थान वा उदयस्थान संभवै तिनका वर्णन है। वहुरि मोह के वंध, उदय, सत्त्वनि विप दोय आधार, एक प्राधेय तीन प्रकार, तहा जिस-जिस वधस्थानसहित उदयस्थान विपै जो-जो सत्त्वस्थान जिसप्रकार संभवै, अर जिस-जिस वंधस्थानसहित सत्त्वस्थान विपै जो-जो उदयस्थान संभवै पर जिस-जिस उदयस्थान सहित सत्त्वस्थान विप जो-जो वंधस्थान पाइए ताका वर्णन है। बहुरि नामकर्म के स्थानोक्त भंग कहि गुणस्थाननि विपै, पर चौदह जीवसमासनि विपै अर गति आदि मार्गणानि के भेदनि विप संभवते वंध, उदय, सत्त्वस्थाननि का वर्णनकरि एक आधार, दोय प्राधेय का वर्णन विपं जिस-जिस वंधस्थाननि विपै जो-जो उदयस्थान वा सत्त्वस्थान जिसप्रकार सभवै, अर जिस-जिस उदयस्थान विप जो-जो वंधस्थान वा सत्त्वस्थान जिसप्रकार सभव, अर जिस-जिस सत्त्वस्थान विपै जो-जो वंधस्थान वा उदयस्थान जिस-जिसप्रकार संभव तिनका वर्णन है । वहुरि दोय आधार, एक प्राधेय विष जिस-जिस वंधस्थानसहित उदय स्थान विपं जो-जो सत्त्वस्थान संभवै, अर जिस-जिस वंधस्थानसहित सत्त्वस्थान विप जो-जो उदयस्थान संभवै अर जिस-जिस उदयस्थानसहित सत्त्वस्थान विपै जो-जो ववस्थान पाइए तिनका वर्णन है ।
वहरि छठा प्रत्यय अधिकार है, तहां नमस्कारपूर्वक प्रतिमा करि च्यारि मूल पायव अर सत्तावन उत्तरास्रवनि का, अर ते जेसै गुणस्थाननि विप सभवै ताका, तहा व्युच्छित्ति वा प्रास्रवनि के प्रमाण, नामादिक का वर्णन करि, तहां विशेष जानने की पच प्रकारनि का वर्णन है । तहा प्रथम प्रकार विष एक जीव के एक काल मंभव ऐमें जघन्य, मध्यम, उत्कृप्टरूप प्रास्रवस्थान जेते-जेते गुणस्थाननि विपै पाइए तिनका वर्णन है।
बहुरि दूसरा प्रकार विपै एक-एक स्थान विष प्रास्रवभेद वदलने ते जेते-जेते प्रकार होड तिनका वर्णन है ।
बहरि तीसरा प्रकार विपै तिन स्थाननि के प्रकारनि विप संभवते आस्रवनि की अपेक्षा कूटरचना के विधान का वर्णन है ।
वहरि चाया प्रकार विपै तिनहूं कूटनि के अनुसारि अक्षसंचारि विधान ते अंग यावधाननि की कहने का विधानरूप कूटोच्चारण विधान का वर्णन है। वहां