________________
४० ]
| गोम्मटसार कर्मकाण्ड सम्बन्धी प्रकरण
का उपशम होइ ताका, तहा लब्धि आदि होने का, अर प्रथमोपशम सम्यक्त्व भए मिथ्यात्व के तीन खंड हो हैं ताका, तहां नारकादिक कैं जे बंधस्थान पाइए तिनका, तहां नूरक विषे तीर्थंकर के वंध होने के विधान का, वा साकार - उपयोग होने का, वा निसर्गज-अधिगमज के स्वरूप का र द्वितीयोपशम सम्यक्त्व जाकै होइ ताका, तहां पूर्वकरणादि विषै जो-जो क्रिया करता चढे वा उतरं ताका, तहां जे वंधस्थान संभवे ताका, वा तहां मरि देव होय ताकेँ वंघस्थान संभव ताका वर्णन है । वहुरि क्षायिक सम्यक्त्व का प्रारंभ - निष्ठापन जाके होइ ताका, वा तहां तीन करण हो है तिनका, तां गुणश्रेणी आदि होने का अर अनंतानुवंधी का विसंयोजनकरि पीछे केई क्रिया करि करणादि विधान ते दर्शनमोह क्षपावने का, अर तहां प्रारंभ-निष्ठापन के काल का, वा तिनके स्वामीनि का, वा तहां तीर्थंकर सत्तावाले के तद्भव अन्यभव विषै मुक्ति होने का वर्णनकरि क्षायिक सम्यक्त्व विषै संभवते वंधस्थाननि का वर्णन है । बहुरि वेदक-सम्यक्त्व. जिनके होइ अर प्रथमोपशम, द्वितीयोपशम सम्यक्त्व ते वा मिथ्यात्व ते जैसे वेदक सम्यक्त्व होइ, अर तिनके जे बंधस्थान पाइए तिनका वर्णन है ।
वहुरि सासादन, मिश्र, मिथ्यात्व जहां-जहां जिस-जिस दशा विषे संभवै श्रर तहां जे वंघस्थान पाइए तिनका वर्णन है । तहां प्रसंग पाइ विवक्षित गुरणस्थान ते जिस-जिस गुणस्थान को प्राप्त होइ ताका वर्णन है ।
बहुरि संज्ञी र आहार मार्गणा विषै वंघस्थाननि का वर्णन है । वहुरि नाम के बंबस्थाननि विषै भुजाकारादि कहने को पुनरुक्त, अपुनरुक्त भंगनि का, अर स्वस्थानादि तीन भेदनि का, प्रसंग पाइ गुणस्थाननि ते चढने-उतरने का, जहां मरण न होइ ताका, कृतकृत्य - वेदक सम्यग्दृष्टि मरि जहां उपजै ताका, भुजाकारादिक के लक्षरण का, अर इकतालीस जीव पदनि विपं भंगसहित वंधस्थाननि का वर्णन करि मिथ्यादृष्ट्यादि गुग्गुणस्थाननि विषे संभवते भुजाकार, अल्पतर, अवस्थित, भगनि का वर्णन है ।
अवक्तव्य
बहुरि नाम के उदयस्थाननि का वर्णन विषे कार्माण १, मिश्रशरीर, शरीरपर्याप्ति, उच्छ्वासपर्याप्ति, भाषापर्याप्ति इन पंचकालनि का स्वरूप प्रमाणादिक कहि, वा केवली के समुद्घात अपेक्षा इनका संभवपना कहि नाम के उदयस्थान हानि १. 'होने का रिमा व पुस्तक में पाठ है