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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका
[ ४०१ प्रमाण हो है । पांच का भाग देइ, च्योरि करि गुणे द्वियोगीनि विषै काययोगीनि का प्रमाण हो है।
कम्मोरालियमिस्सयोरालद्धासु संचिदअणंता । कम्मोरालियमिस्सय, ओरालियजोगिणो जीवा ॥२६॥
कार्मणौदारिकमिश्रकौरालाद्धासु संचितानंताः ।
कार्मरणौरालिकमिश्रकौरालिकयोगिनो जीवाः ॥२६४॥ टीका - कार्माण काययोग, औदारिकमिश्र काययोग, औदारिक काययोग इनि के कालनि विर्षे संचित कहिए एकठे भएं, जे कार्माण काययोगी, औदारिक मिश्र काययोगी, औदारिक काययोगी जीव, ते प्रत्येक जुदे-जुदे अनंतानंत जानने, सोई कहिए है।
समयत्तयसंखावलिसंखगुणावलिसमासहिदरासी । सगगुणगुणिदे थोवो, असंखसंखाहदो कमसो ॥२६॥
समयत्रयसंख्यावलिसंख्यगुणावलिसमासहितराशिम् ।
स्वकगुणगुणिते स्तोकः, असंख्यसंख्याहतः क्रमशः ॥२६५॥ टीक - कार्मण काययोग का काल तीन समय है, जातै विग्रह गति विष अनाहारक तीनि समयनि विर्षे कारण काय योग ही संभव है । बहुरि औदारिक मिश्र काययोग का काल संख्यात प्रावली प्रमाण है, जाते अंतर्मुहूर्त प्रमाण अपर्याप्त अवस्था विष औदारिकमिश्र का काल है। बहुरि तातै सख्यातगुणा औदारिक काययोग का काल है; जाते तिनि दोऊ कालनि बिना अवशेष सर्व औदारिक योग का ही काल है; सो इनि सर्व कालनि का जोड दीएं जो समयनि का परिमाण भया, ताको द्विसंयोगी त्रिसयोगी राशि करि हीन ससारी जीव राशिमात्र एक योगी जीव राशि के परिमाण को भाग दीए जो एक भाग विष परिमाण आवै, तीहि को कार्माण काल करि गुण, जो परिमाण होइ, तितने कार्माण काययोगी है । अर तिस ही एक भाग कौं औदारिक मिश्र काल करि गुणे, जो परिमाण होड, तितने प्रौदारिक मिश्र योगी जानने । बहुरि तिस ही एक भाग को औदारिक के काल करि गणे, जो परिमाण होइ, तितने औदारिक काययोगी जानने ।