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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया २५८
३९४ ]
ताका समाधान - जो समय-समय प्रति बंधे समय प्रवद्धनि का एक-एक निषेक एकठे होइ, विवक्षित एक समय विर्षे समय प्रवद्धमात्र हो है ।
कैसै ? सो कहिएहै - अनादिबध का निमित्तक रि बध्या विवक्षित समयप्रबद्ध, ताका जिस काल विर्षे अंत निषेक उदय हो है, तिस काल विष, ताके अनतरि वध्या समयप्रबद्ध का अत ते दूसरा निषेक उदय हो है । ताके अनतरि बंध्या समयप्रबद्ध का अत ते तीसरा निषेक उदय हो है । जैसे चौथा आदि समयनि विषै वध, समयप्रबद्धनि का अत ते चौथा आदि निषेकनि का उदय क्रम करि आवावाकाल रहित विवक्षित स्थिति के जेते समय तितने स्थान जाय, अंत विष जो समयप्रवद्ध बंध्या, ताका आदि निषेक उदय हो है । जैसै सबनि को जोडै, विवक्षित एक समय विर्षे एक समयप्रबद्ध उदय आवै है ।
अंकसदृष्टि करि जैसे जिन समयप्रबद्धनि के सर्व निषेक गलि गए, तिनिका तौ उदय है ही नाही । बहुरि जिस समयप्रबद्ध के सैतालीस निषेक पूर्वं गले, ताका अत नव का निषेक वर्तमान समय विष उदय आवै है । बहुरि जाके छियालीस निषेक पूर्वं गले, ताका दश का निषेक उदय हो है । जैसे ही क्रम ते जाका एकहू निषेक पूर्व न गल्या, ताका प्रथम पांच से बारा का निषेक उदय हो है। असै वर्तमान कोई एक समय विष सर्व उदय रूप निषेक । ९ १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ । १८ २० २२ २४ २६ २८ ३० ३२ । ३६ ४० ४४ ४८ ५२ ५६ ६० ६४ । ७२ ८० ८८ ६६ १०४ ११२ १२० १२८ । १४४ १६० १७६ १६२ २०८ २२४ २४० २५६ । २८८ ३२० ३५२ ३८४ ४१६ ४४८ ४८० ५१२ । असे इनिको जोडै सपूर्ण समय प्रबद्धमात्र प्रमाण हो है ।
आगामी काल विषै जैसे नवीन समयप्रबद्ध के निषेकनि का उदय का सद्भाव होता जाइगा, तैसे पुराणे समयप्रबद्ध के निषेकनि के उदय का अभाव होता जायगा । जैसे आगामी समय विष नवीन समयप्रबद्ध का पाच से बारा का निषेक उदय आवैगा, तहा वर्तमान समय विषै जिस समयप्रबद्ध का पाच से बारा का निषेक उदय था, ताका पाच सै बारा का निषेक का अभाव होइ, दूसरा च्यारि सै असी का निषेक उदय होगा । बहुरि जिस समयप्रबद्ध का वर्तमान समय विष च्यारि सै असी का निषेक उदय था, ताका तिस निषेक का अभाव होइ, च्यारि सै अड़तालीस के निषेक का उदय होगा। जैसे क्रम ते जिस समयप्रबद्ध का वर्तमान समय विष नव