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________________ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ] | T हां यह जानना जैसे अग्नि के संयोग करि लोहे के जलावने की शक्ति हो है । तैसै अंगोपाग शरीर नामा नामकर्म के उदय करि मनो वर्गरणा वा भाषा वर्गरणा का आए पुद्गल स्कंध पर आहार वर्गणा का आए नोकर्म पुद्गल स्कंध, तिनि का संबंधकरि जीव के प्रदेशनि के कर्म - नोकर्म ग्रहण की शक्ति-समर्थता हो है । आ योगनि का विशेष लक्षण कहै है मणवयणाण पत्ती, सच्चासच्चुभयअणुभयत्थेसु । तण्णामं होदि तदा तेहि दु जोगा हु तज्जोगा ॥ २१७ ॥ मनोवचनयोः प्रवृत्तयः, सत्यासत्योभयानुभयार्थेषु । तन्नाम भवति तदा तैस्तु योगाद्धि तद्योगाः ॥ २१७ ॥ टीका - सत्य, असत्य, उभय, अनुभय रूप जे पदार्थ, तिनि विषै जो मन, वचन की प्रवृत्ति होइ, उनके जानने को वा कहने को जीव की प्रयत्नरूप प्रवृति होइ, सो सत्यादिक पदार्थ का संबंध तै, तो सत्य, असत्य, उभय, अनुभय है, विशेषण जिनि का, असे च्यारि प्रकार मनोयोग र च्यारि प्रकार वचनयोग जानने । तहां यथार्थ जैसा का तैसा सांचा ज्ञानगोचर जो पदार्थ होइ, ताकौ सत्य कहिए । जैसे जल का जानना के गोचर जल होइ जाते स्नान - पानादिक जल संबंधी क्रिया उस सिद्ध हो है; तातै सत्य कहिए । बहुरि यथार्थं अन्यथारूप पदार्थ जो मिथ्याज्ञान के गोचर होइ, ताकौ असत्य कहिए। जैसे जल का जानना के गोचर भाडली ( मृगजल ) होइ, जा स्नान - पानादिक जल संबंधी क्रिया भाडली स्यो सिद्ध न हो है, तातै असत्य कहिए । बहुरि यथार्थ वा यथार्थ रूप पदार्थ जो उभय ज्ञान गोचर होड, ताकी उभय कहिए । जैसे कमंडलु विषै घट का ज्ञान होइ, जातै घट की ज्यों जलधारणादि क्रिया 'कमडलु स्यों सिद्ध हो है, तातं सत्य है । वहुरि घटका-सा ग्राकार नाही है, ता सत्य है; असे यहु उभय जानना । बहुरि जो यथार्थ अयथार्थ का निर्णय करि रहित पदार्थ, जो ग्रनुभय ज्ञान गोचर होइ, ताक अनुभव कहिए । सत्य-असत्यरूप कहने योग्य नाही, जैसे यह किछू प्रतिभास है, से सामान्यरूप पदार्थं प्रतिभास्या, तहा उस पदार्थं करि कोन
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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