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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका।
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बाह्य कह्या । इनि बिना और त्रस का अस्तित्व त्रसनाली बाह्य नाही है, असा अभिप्राय शास्त्र के कर्ता का जानना ।
प्रागै वनस्पतीवत् अन्य भी जीवनि के प्रतिष्ठित, अप्रतिष्ठितपना का भेद दिखावै है
पुढवीआदिचउण्हं, केवलियाहारदेवरिणरयंगा । अपदिठिदा णिगोदहि, पट्दिठिदंगा हवे सेसा ॥२०॥ पृथिव्यादिचतुर्णा, केवल्याहारदेवनिरयांगानि ।
अप्रतिष्ठितानि निगोदः, प्रतिष्ठितांगा भवंति शेषाः ॥२०॥ टोका - पृथ्वी प्रादि चारि प्रकार जीव पृथ्वी - अप - तेज - वायु इनि का शरीर, बहुरि केवली का शरीर, बहुरि आहारक शरीर, बहुरि देवनि का शरीर, बहुरि नारकीनि का शरीर ए सर्व निगोद शरीरनि करि अप्रतिष्ठित है;
आश्रित नाहीं । इनि विष निगोद शरीर न पाइए है। बहुरि अवशेष रहे जे जीव, तिनि के शरीर प्रतिष्ठित जानने । इनि विर्षे निगोद शरीर पाइए है । तातै अवशेष सर्व निगोद शरीरनि करि प्रतिष्ठित है, आश्रित है । तहा सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पती, द्वींद्रिय, त्रीद्रिय, चतुरिद्रिय, पचेद्रिय, तिर्यच अर पूर्व कहे तिनि बिना अवशेष मनुष्य इनि सबनि के शरीर विष निगोद पाइए है।
आगै स्थावरकायिक, त्रसकायिक जीवनि के शरीर का आकार कहै हैमसुरंबुबिंदुसूई-कलावधयसण्णिहो हवे देहो। पुढवीआदिचउण्ह, तरुतसकाया अणेयविहा ॥२०१॥
मसूरांबुबिंदुसूचीकलापध्वजसन्निभो भवेद्देहः ।
पृथिव्यादिचतुर्णा, तरुत्रसकाया अनेकविधाः ॥२०१॥
टोका - पृथिवीकायिक जीवनि का शरीर मसूर अन्न समान गोल आकार धरै है । बहुरि अपकायिक जीवनि का शरीर जल की बूंद के समान गोल आकार धरै है । बहुरि अग्निकायिक जीवनि का शरीर सुईनि का समूह के समान लंबा अर ऊर्ध्व विष चौड़ा बहुमुखरूप आकार धरै है । बहुरि वातकायिक जीवनि का शरीर