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| गोम्मटसार जीवकाण्ड सम्बन्धी प्रकरण २६] अनुक्रम का वर्णन है। बहुरि सक्रमणाधिकार विषै स्वस्थान-परस्थान सक्रमण कहि सक्लेशविशुद्धि का वृद्धि-हानि ते जैसे सक्रमण हो है ताका, अर सक्लेशविशुद्धि विर्षे जैसै लेश्या के स्थान होइ, अर तहा जैसै षट्स्थानपतित वृद्धि-हानि संभवै, ताका वर्णन है । वहुरि कर्माधिकार विष छहो लेश्यावाले कार्य विष जैसे प्रवर्त, ताके उदाहरण का वर्णन है । वहुरि लक्षणाधिकार विर्ष छहो लेश्यावालेनि का लक्षण वर्णन है ।
बहुरि गति अधिकार विष लेश्यानि के छब्बीस अश, तिनविर्ष आठ मध्यम अंश पायुबंध को कारण, ते आठ अपकर्षकालनि विष हौइ, तिन अपकर्षनि का उदाहरणपूर्वक स्वरूप का अर तिनविर्ष आयु न बंधै तौ जहा बधै ताका, अर सोपक्रमायुक, निरुपक्रमायुष्क, जीवनि के अपकर्षणरूप काल का, वा तहां आयु वधने का विधान वा गति आदि विशेष का, अर अपकर्षनि विर्ष आयु वधनेवाले जीवनि के प्रमाण का वर्णन करि पीछे लेश्यानि के अठारह अशनि विषै जिस-जिस अश विष मरण भए, जिस-जिस स्थान विषे उपजै ताका वर्णन है ।
वहरि स्वामी अधिकार विर्षे भाव लेश्या की अपेक्षा सात नरकनि के नारकीनि विप, अर मनुप्य-तिर्यच विष, तहा भी एकेद्रिय-विकलत्रय विषै, असैनी पचेद्रिय विपै लब्धि अपर्याप्तक तियंच-मनुष्य विष, अपर्याप्तक तिर्यच-मनुष्य-भवनत्रिकदेव सासादन वालों विप, पर्याप्त-अपर्याप्त भोगभूमियां विष, मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानिनि विषै, पर्याप्त भवनत्रिक-सौधर्मादिक आदि देवनि विष जो-जो लेश्या पाइए ताका वर्णन है। तहा असनी के लेश्यानिमित्त ते गति विष उपजने का आदि विशेष कथन है।
वहुरि साधन अधिकार विष द्रव्य लेण्या अर भाव लेश्यानि के कारण का वर्णन है।
वहरि सख्याधिकार विप द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, मान करि कृष्णादि लेश्यायाले जीवनि का प्रमाण वर्णन है।
बहुरि क्षेत्राधिकार विपै सामान्यपने स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद अपेक्षा, दिपपने दोय प्रकार स्वस्थान, सात प्रकार समुद्घात, एक उपपाद इन दश स्थाननि विमभवत ग्याननि की अपेक्षा कृष्णादि लेण्यानि का (स्थान वर्णन कहिए) क्षेत्र वर्ण: । नहा प्रसंग पा विवक्षित लेण्या विपै संभवतै स्थान, तिन विप जीवनि मे प्रमाण मा, तिन न्याननि विप क्षेत्र के प्रमाण का, समुद्घातादिक के विधान का, नादिर का, मरने वाले आदि देवनि के प्रमाण का, केवल समुद्घात विष
दिर का, तहा लोक के क्षेत्रफल का इत्यादिक का वर्णन है ।