________________
सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
[ ३२३
आगै स्थावर काय के पाच भेद कहे है
पुढवी आऊतेऊ, वाऊ कम्मोदयेरेण तत्थेव । रिणयवण्णचउक्कजुदो, तांणं देहो हवे नियमा ॥ १८२ ॥
पृथिव्यप्तेजोवायुकम्मोंदयेन
तत्रैव I निजवर्णचतुष्कयुतस्तेषां देहो भवेन्नियमात् ॥ १८२ ॥
टीका - पृथ्वी, आप, तेज, वायु विशेष धरै जो नाम कर्म की स्थावर प्रकृति के भेदरूप उत्तरोत्तर प्रकृति, ताके उदय करि जीवनि के तहां ही पृथिवी, आप, तेज, वायु रूप परिणये जे पुद्गलस्कध, तिनि विषै अपने-अपने पृथिवी प्रादि रूप वर्णादिक चतुष्क संयुक्त शरीर नियम करि हो है । से होते पृथिवीकायिक, अप्कायिक, तेजकायिक, वातकायिक जीव हो है ।
तहा पृथिवी विशेष लीए स्थावर पर्याय जिनके होइ, ते पृथिवीकायिक कहिये । अथवा पृथिवी है काय कहिये शरीर जिनका, ते पृथिवीकायिक कहिए । जैसे ही अपकायिक, तेजकायिक, वातकायिक जानने । तिर्यच गति, एकेद्री जाति श्रदारिक शरीर, स्थावर काय इत्यादिक नामकर्म की प्रकृतिनि के उदय अपेक्षा असी निरुक्ति सभव है ।
बहुरि जो जीव पूर्व पर्याय को छोडि, पृथ्वी विषै उपजने कौं सन्मुख भया होइ, सो विग्रह गति विषै अंतराल में यावत् रहै, तावत् वाक पृथ्वी जीव कहिये । जाते इहा केवल पृथिवी का जीव ही है, शरीर नाही ।
बहुरि जो पृथिवीरूप शरीर को धरै होइ, सो पृथिवीकायिक कहिए । जातै वहा पृथिवी का शरीर वा जीव दोऊ पाइए है ।
बहुरि जीव तो निकसि गया होइ, वाका शरीर ही होइ, ताकौ पृथिवीकाय कहिये । जातै वहां केवल पृथिवी का शरीर ही पाइए है । जैसे तीन भेद जानने । बहुरि अन्य ग्रंथिनि विषे च्यारि भेद कहे है । तहां ए तीनो भेद जिस विषै गर्भित होइ, सो सामान्य रूप पृथिवी जैसा एक भेद जानना । जाते पूर्वोक्त तीनों भेद पृथिवी के ही है । जैसे ही अप्जीव, अप्कायिक, अप्काय । बहुरि तेजः जीव, तेजः कायिक, तेज. काय । बहुरि वातजीव, वातकायिक, वातकायरूप तीन-तीन भेद जानने ।