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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटोका ]
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बहुरि कषाय मार्गणा विषै च्यारो कषायनि विषै मिथ्यादृष्ट्यादि प्रप्रमत्त पर्यंत का मनोयोगवत् अर दोऊ उपशमक वा क्षपक वा सूक्ष्म लोभ अर अकषाय इनिका सामान्यवत् काल है |
बहुरि ज्ञान मार्गणा त्रिषै तीन कुज्ञाननि विषै वा पाच सुज्ञाननि विषै अपने-अपने गुणस्थाननि का सामान्यवत् काल है । विशेष इतना - विभग विषे मिथ्यादृष्टि का काल देशोन तेतीस सागर है ।
बहुरि संयम मार्गणा विषै सात भेदनि विषै अपने-अपने गुणस्थाननि का सामान्यवत् काल है |
बहुरि दर्शन मार्गणा विषै च्यारि भेदनि विषे अपने-अपने गुणस्थाननि का सामान्यवत् काल है । विशेष इतना - चक्षुदर्शन विषै मिथ्यादृष्टि का उत्कृष्ट काल दोय हजार सागर है ।
बहुरिया मार्गणा विषे छह भेदनि विषे वा अलेश्यानि विषै अपने-अपने गुणस्थाननि का सामान्यवत् काल है । विशेष इतना - कृष्ण, नील, कापोत विषै मिथ्यादृष्टि का उत्कृष्ट काल क्रम ते साधिक तेतीस, सतरह, सात सागर अर असंयत का उत्कृष्ट काल क्रम तै देशोन तेतीस, सतरह, सात सागर है । अर पीत- पद्म विषै मिथ्यादृष्टि वा असंयत का उत्कृष्ट काल क्रम तै दोय, अठारह सागर है । संयतासंयत का जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त काल है । बहुरि शुक्ल लेश्या विषे मिथ्यादृष्टि का उत्कृष्ट काल साधिक इकतीस सागर, संयतासंयत का जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अतर्मुहूर्त काल है ।
बहुरि भव्य मार्गणा विषै भव्य विषे मिथ्यादृष्टि का अनादि सांत वा सादि सात काल है । तहा सादि सांत जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट देशोन अर्ध पुद्गल परिवर्तन मात्र है । अवशेषनि का सामान्यवत् काल है । अभव्य विषं अनादि अनत काल है ।
छहो भेदनि विषै अपने-अपने गुणस्थाननि उपशम सम्यक्त्व विषै प्रसयत, सयतासयत
बहुरि सम्यक्त्व मार्गगा विषै का सामान्यन्वत् काल है । विशेष इतना का जघन्य वा उत्कृष्ट काल अंतर्मुहूर्त मात्र है ।
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बहुरि संज्ञी मार्गणा विषै संज्ञी विषे मिथ्यादृष्टि आदि अनिवृत्तिकरण पर्य तनि का पुरुष वेदवत्, अवशेषनि का सामान्यवत् काल है । असंज्ञी विषै मिथ्यादृष्टि