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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
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टीका - जैसे श्रुतज्ञान विषे उपदेश्या तैसे ही जीव नामा पदार्थ, जिनकरि वा जिनिविषै जानिए, ते चौदह मार्गणा है । पूर्वे तो सामान्यता करि गुणस्थान जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, सज्ञा इनिकरि त्रिलोक के मध्यवर्ती समस्त जीव लक्षण करि वा भेद करि विचारे ।
बहुरि अब विशेषरूप गति - इद्रियादि मार्गणानि करि तिन ही को विचार है, असे हे शिष्य, तू जानि । गति आदि जे मार्गणा जब एक जीव कें नारकादि पर्यायनि की विवक्षा लीजिए, तब तो जिनि मार्गणानि करि जीव जानिए जैसे तृतीया विभक्ति करि कहिए । बहुरि जब एक द्रव्य प्रति पर्यायनि के अधिकरण की विवक्षा 'इनि विषे जीव पाइए है' औसी लीजिए, तब जिनि मार्गणानि विषै जीव जानिए जैसे सप्तमी विभक्ति करि कहिए । जाते विवक्षा के वश ते कर्ता, कर्म इत्यादि कारकनि की प्रवृत्ति है ऐसा न्याय का सद्भाव है ।
आगे तिनि चौदह मार्गणानि के नाम कहै है
गइइंदियेसु काये, जोगे वेदे कसायरणारय । संजमदंसणलेस्सा-भविया - सम्मत्तसण्णि- श्राहारे ॥ १४२ ॥
गतींद्रियेषु काये, योगे वेदे कषायज्ञाने च ।
संयमदर्शनलेश्या भव्यतासम्यक्त्वसंश्याहारे ॥ १४२ ॥
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टीका १. गति, २. इद्रिय, ३. काय, ४. योग, ५. वेद, ६. कषाय, ७ ज्ञान, ८. संयम, ६. दर्शन, १०. लेश्या, ११. भव्य, १२. सम्यक्त्व, १३. सज्ञी, १४ आहार से ए गति आदि पद है । ते तृतीया विभक्ति वा सप्तमी विभक्ति का अंत ली है । तातै गति करि वा गति विषै इत्यादिक असे व्याख्यान करने । सो इनिकरि वा इनिविषै जीव मार्ग्यन्ते कहिए जानिये, ते चौदह मार्गणा जैसे अनुक्रम करि नाम है, तैसे कहगे |
आगे तिनिविषे आठ सांतर मार्गरणा है, तिनिका स्वरूप, संख्या, विधान निरूपण के अर्थि गाथा तीन कहै है '
उवसमसुहमाहारे, वेगुव्वियमिस्स गरअपज्जत्ते । सासणसम्मे मिस्से, सांतरगा मग्गरणा अट्ठ ॥ १४३ ॥