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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
आगे तिनि द्रव्य भाव प्रारणनि का उपजने की सामग्री को कहै है
वीरियजुदमदिखउवसमुत्था गोइंदियेंदियेसु बला । देहुये कायारणा, वचीबला आउ आउदये ॥ १३१ ॥
'वीर्ययुतमतिक्षयोपशमोत्था नोइन्द्रियंद्रियेषु बलाः । देहोद कायानौ, वचोबल प्रायुः प्रयुरुदये ॥१३१॥
टीका - स्पर्शन, रसन, धारण, चक्षु, श्रोत्र करि निपजे पांच इद्रिय प्राण अर नो इंद्रिय करि निपज्या एक मनोबल प्रारण, ए छहो तो मतिज्ञानावरण पर वीर्यान्तराय, तिनके क्षयोपशम तै हो है । बहुरि शरीर नामा नामकर्म के उदय होते काय - बल अर सासोस्वास प्राण हो है । बहुरि शरीर नामा नामकर्म का उदय होते अर स्वर नामा कर्म का उदय होते वचनबल प्राण हो है । बहुरि आयुकर्म का उदय होते प्रारण हो है । जैसे प्राणनि के उपजने की सामग्री कही ।
ए प्रारण कौन-कौन के पाइए सो भेद है है
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इंदियकाया ऊरिण य, पुण्णापुण्णेसु पुण्णगे आणा । बीइंदियादिपुण्णे, वचीमरणो सण्णिपुण्णेव ॥१३२॥
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इन्द्रियकायाषि च, पूर्णापूर्णषु पूर्ण के प्रानः । द्वीन्द्रियादिपूर्णे, वचो मनः संज्ञिपूर्णे एव ।। १३२ ।।
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टीका - इंद्रिय प्रारण, कायबल प्राण, आयु प्राण ए तो तीन प्राण पर्याप्ति वा अपर्याप्त दोऊ दशा विषै समान पाइए है । बहुरि सासोस्वास प्रारण पर्याप्ति दशा विषे ही पाइए, जातै ताका कारण उच्छवास निश्वास नामा नाम कर्म का उदय पर्याप्त काल विषै सभवै है । बहुरि वचनबल प्राण बेइद्रियादिक पचेन्द्रिय पर्यत जीवनि कै पर्याप्त दशा ही विषै पाइए है, जाते ताका कारणभूत स्वर नामा नामकर्म का उदय अन्यत्र न सभवै है । बहुरि मनबल प्रारण सैनी पचेद्रिय के पर्याप्त दशा विषै ही पाइए है, जातै ताका कारण वीर्यान्तराय अर मन आवरण का क्षयोपशम, सो अन्यत्र न सभव है |
आगे एकेद्रियादिक जीवनि के केते - केते प्राण पाइए, सो कहै है -