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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा १२०
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का आवरण अर वीर्यान्तराय के क्षायोपशम विशेष करि गुण-दोप का विचार, प्रतीत का याद करना, अनागत विपं याद रखना, इत्यादिकरूप भावमन के परिणामावने की शक्ति होइ, ताकौ मन पर्याप्ति कहिए है । से छह पर्याप्ति जानना ।
पज्जत्तीपट्ठवरणं, जुगवं तु कमेरण होदि गिट्ठवरणं । अन्तो मुहुत्तकाले हियकसा तत्तियालावा ॥ १२०॥ पर्याप्तिप्रस्थापनं, युगपत्तु क्रमेण भवति निष्ठापनम् । अंतर्मुहूर्त कालेन, अधिकमास्तावदालापात् ॥ १२० ॥
टीका - जेते - जेते अपने पर्याप्ति होइ, तिनि सवनि का प्रतिष्ठापन कहिए प्रारंभ, सो तो युगपत् शरीर नामा नामकर्म का उदय के पहिले ही समय हो है । बहुरि निष्ठापन कहिए तिनिकी संपूर्णता, सो अनुक्रम करि हो है । सो निष्ठापन का काल प्रतर्मुहूर्त - अंतर्मुहूर्त करि अधिक है, तथापि तिनि सवनि का काल सामान्य श्रालाप करि अंतर्मुहूर्त ही कहिए. जातै अंतमुंहूर्त के भेद बहुत है ।
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कैसे निष्ठापन का काल है ?
सो कहै है - ग्राहार पर्याप्ति का निष्ठापन का काल सर्वानि ते स्तोक है, तथापि अतर्मुहूर्त मात्र है । वहुरियाको सख्यात का भाग दीए जो काल का परिमाण प्रावै, सो भी अनर्मुहूर्त है । सो यहु अतर्मुहूर्त उस आहार पर्याप्ति का अंतमुहूर्त में मिलायें जा परिमारण होइ, सो शरीर पर्याप्ति का निष्ठापन काल जानना । सो यह भी अतर्मुहूर्त ही जानना | बहुरि याहु का सख्यातवां भाग प्रमाण अतर्मुहूर्त याही मे मिलाये इंद्रिय पर्याप्ति का काल होइ, तो भी प्रतर्मुहूर्त ही है । वहुरि याका संख्यातवां भाग प्रमाण अंतर्मुहूर्त याही में मिलाए श्वासोश्वास पर्याप्ति काल होइ, सो भी अंतर्मुहूर्त ही है । जैसे एकें - त्रिय पर्याप्ति के ती ए च्यारि ही पर्याप्ति इस अनुक्रम करि संपूर्ण होइ है । वहुरि वामन पर्याप्ति काल का सख्यातवाँ भाग का प्रमाण अतर्मुहूर्त याही में मिलाए भाषा पर्याप्त का काल हाड, सो भी अतर्मुहूर्त ही है । स विकलेद्रिय पर्याप्ति जीवन के ए पांच पर्याप्ति इस अनुक्रम करि सपूर्ण होइ हैं । वहुरि भाषा पर्याप्ति बाद या संग्ातवा भाग प्रभाग अंतर्मुहूर्त याही मे मिलाए मन पर्याप्ति का काल रोग भी अंतर्मुहुर्त ही है । अझै संजी पचेद्रिय पर्याप्ति के छह पर्याप्ति इस अनुहै । जैसे इनका निष्ठापन काल कह्या ।