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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटोका ]
[ २६५ अर्धच्छेद होंइ, परन्तु वर्गशलाकारूप प्रयोजन की सिद्धि नाही, तातै अधिक के अर्धच्छेद नाही करने जैसा कह्या, याही ते सागर की वर्गशलाका का अभाव है। उक्त च -
भज्जस्सद्धछेदा, हारद्धछेदणाहि परिहीणा । अद्धच्छेदसलागा, लद्धस्स हवति सव्वत्थ ।।
अर्थ - भाज्यराशि के अर्धच्छेद भागहार के अर्धच्छेदनि करि हीन करिए, तब लब्धराशि की अर्धच्छेद शलाका सर्वत्र हो है । जैसे एक सौ अट्ठाईस के भाज्य के अर्धच्छेद सात, इनमे भागहार आठ के तीन अर्धच्छेद घटाए लब्धराशि सोलह के च्यारि अर्धच्छेद हो है, जैसे ही अन्यत्र जानना ।
विरलज्जमारणरासि, दिण्णस्सद्धच्छिदीहिं संगुणिदे ।
अद्धच्छेदा होति हु, सव्वत्थुपण्णरासिस्स ॥ अर्थ - विरलन राशि को देय राशि के अर्धच्छेदनि करि गुणे उत्पन्न राशि के अर्धच्छेद सर्वत्र हो है। जैसे विरलन राशि च्यारि, ताकौ देय राशि सोलह के अर्धच्छेद च्यारि करि (गुणे) उत्पन्न राशि पणट्टी के सोलह अर्धच्छेद हो है । असे इहां भी पल्य अर्धच्छेद प्रमाण विरलन राशि को देय राशि पल्य, ताके अर्धच्छेदनि करि गुण उत्पन्न राशि सूच्यगुल के अर्धच्छेद हो है । जैसे ही अन्यत्र जानना ।
विरलिदराशिच्छेदा, दिण्ण द्धच्छेदच्छेदसंमिलिदा ।
वग्गसलागपमाणं, होंति समुप्पण्णरासिस्स ।। अर्थ - विरलन राशि के अर्धच्छेद देयराशि के अर्धच्छेदनि के अर्धच्छेदनि करि सहित जोडै उत्पन्न राशि की वर्गशलाका का प्रमाण हो है । जैसै विरलन राशि च्यारि के अर्धच्छेद दोय अर देय राशि सोलह के अर्धच्छेद च्यारि, तिनिके अर्धच्छेद दोय, इनको मिलाए उत्पन्न राशि पणट्ठी की वर्गशलाका च्यारि हो है । जैसे ही विरलन राशि पल्य के अधच्छेद, तिनिके अर्धच्छेद तिनिविर्ष देय राशि पल्य, ताके अर्धच्छेदनि के अर्धच्छेद जोडे उत्पन्न राशि सूच्यगुल के वर्गशलाका का प्रमाण हो है। असे हो अन्यत्र जानना।
दुगुणपरित्तासखेगवहरिदद्धारपल्लवग्गसला । विदंगुलवग्गसला, सहिया सेढिस्स वग्गसला ॥