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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका पीठिका ]
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मान विषै संख्यात, असंख्यात, अनंत के इकईस भेदनि का वर्णन | बहुरि सख्या के विशेष रूप चौदह धारानि का कथन है । तिनि विषै द्विरूपवर्गधारा, द्विरूपघनधारा द्विरूपघनाघनधारानि के स्थाननि विषे जे पाइए है, तिनका विशेष वर्णन है । तहां प्रसंग पाइ पणट्ठी, बादाल, एकट्ठी का प्रमाण, अर वर्गशलाका, अर्धच्छेदनि का स्वरूप, वा श्रविभागप्रतिच्छेद का स्वरूप, वा उक्तम् च गाथानि करि अर्धच्छेदादिक के प्रमाण होने का नियम, वा अग्निकायिक जीवनि का प्रमाण ल्यावने का विधान इत्यादिकनि का वर्णन है । बहुरि दूसरा उपमा मान के पल्य आदि आठ भेदनि का वर्णन है । तहां प्रसंग पाइ व्यवहारपल्य के रोमनि की संख्या ल्यावने कौ परमाणू तै लगाय अंगुल पर्यंत अनुक्रम का, अर तीन प्रकार अंगुल का, अर जिस जिस अंगुल करि जाका प्रमाण वरिंगए ताका, अर गोलगर्त के क्षेत्रफल ल्यावने का वर्णन है । अर उद्धारपल्य करि द्वीप - समुद्रनि की संख्या ल्याइए है । अद्धापल्य करि आयु आदि वर्ण है, ताका वर्णन है । अर सागर की सार्थिक संज्ञा जानने कौ, लवण समुद्र का क्षेत्रफल कौं आदि देकर वर्णन है । अर सूच्यंगुल, प्रतरांगुल, घनांगुल, जगतश्रेणी, जगत्प्रतर, ( जगत्घन) लोकनि का प्रमाण ल्यावने को विरलन आदि विधान का वर्णन है । बहुरि पत्यादिक की वर्गशलाका अरु अर्धच्छेदनि का प्रमाण वर्णन है । तिनिके प्रमाण जानने को उक्तम् च गाथा रूप करणसूत्रनि का कथन है । बहुरि पीछे पर्याप्ति प्ररूपणा है । तहां पर्याप्त, अपर्याप्त के लक्षण का, अर छह पर्याप्तिनिके नाम का, स्वरूप का, प्रारंभ संपूर्ण होने के काल का, स्वामित्व का वर्णन है । बहुरि लब्धिअपर्याप्त का लक्षण, वा ताके निरंतर क्षुद्रभवनि के प्रमाणादिक का वर्णन है । तहां ही प्रसंग पाइ प्रमाण, फल, इच्छारूप त्रैराशिक गणित का कथन है । बहुरि सयोगी जिन के अपर्याप्तपना संभवने का, अर लब्धि अपर्याप्त, निर्वृति अपर्याप्त, पर्याप्त के संभवते गुणस्थाननि का वर्णन है ।
बहुरि चौथा प्राणाधिकार विषै - प्रारणनि का लक्षण, अर भेद, अर कारण अर स्वामित्व का कथन है ।
बहुरि पाँचमां संज्ञा अधिकार विषै - च्यारि संज्ञानि का स्वरूप, अर भेद, अर कारण, अर स्वामित्व का वर्णन है ।
बहुरि छट्टा मार्गणा महा अधिकार विषै - मार्गरगा की निरुक्ति का, अर चोदह भेदनि का, अर सांतर मार्गरणा के अंतराल का, अर प्रसंग पाइ तत्त्वार्थसूत्र टीका के अनुसारि नाना जीव, एक जीव अपेक्षा गुणस्थाननि विपै, अर गुणस्थान