SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४० ] [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ११७ ताई परस्पर गुणै जो परिमाण आवै, सो परिमाण जघन्य युक्तासख्यात का जानना । याही को अक सदृष्टि करि दिखाइए है - जघन्य परीतासंख्यात का परिमाण च्यारि ( ४ ) याका विरलन कीया १, १ ४४४४ १, १ । बहुरि एक-एक के स्थानक, सोहि दीया ११११ परस्पर गुरगन कीया, तव दोय सै छप्पन भया । जैसे ही जानना । सो इस ही जघन्य युक्तासंख्यात का नाम आवली है, जातै एक श्रावली के समय जघन्य युक्तासंख्यात परिमाण है । बहुरि याके ऊपरि एक-एक बघता एक घाटि उत्कृष्ट युक्तासंख्यात पर्यन्त मध्यम युक्तासंख्यात के भेद जानने । बहुरि एक घाटि जघन्य असंख्यातासंख्यात परिमाण उत्कृष्ट युक्तासंख्यात जानना | अव जघन्य असंख्यातासंख्यात कहिए है - जघन्य युक्तासख्यात की जघन्य युक्तासंख्यात करि एक बार परस्पर गुणै, जो परिमाण आवै, सो जघन्य प्रसंख्यातासंख्यात जानना । याके ऊपरि एक-एक बधता एक घाटि उत्कृष्ट प्रसंख्यातासख्यात पर्यन्त मध्यम श्रसंख्यातासंख्यात जानने । एक घाटि जघन्य परीतानंत प्रमाण उत्कृष्ट संख्याता संख्यात जानना । अव जघन्य परीतानंत कहिए है - जघन्य असंख्याता संख्यात परिमाण तीन राशि करना एक शलाका राशि, एक विरलन राशि, एक देय राशि । तहां विरलन राशि का तो विरलन करना, बखेरि करि जुदा-जुदा एक-एक रूप करना, र एक-एक के ऊपर एक-एक देय राशि धरना । - भावार्थ – यहु जघन्य प्रसंख्यातासंख्यात प्रमाण स्थानकनि विषै जघन्य श्रसंख्यातासख्यात जुदे-जुदे मांडने । बहुरि तिनिको परस्पर गुणिए, जैसें करि उस शलाका राशि में स्यों एक घटाइ देना । बहुरि से कीए जो परिमाण आाया, तितने परिमाण दो राशि करना, एक विरलन राशि, एक देय राशि । तहा विरलन राशि का विरलन करि एक-एक ऊपरि एक-एक देय राशि की स्थापन करि, परस्पर गए। करि उस शलाका राशि मैं स्यो एक और घटाइ देना । वहुरि ऐसे कीए जो परिमाण थाया, तितने प्रमाण विरलन- देय स्थापि, विरलन राणि का विरलन करि एक-एक प्रति देय राशि को देइ परस्पर गुणिये, तव शलाका राशिसुं एक और राहि लेना, अने करते-करते जब यह पहिली वार किया शलाका राशि सर्व संपूर्ण रोम, तत्र तहा जो किछू परिमाण हुवा, सो यहु महाराणि श्रसंख्यातासंख्यात का मध्य
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy