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तीसरा अधिकार : पर्याप्ति प्ररूपणा
संभव स्वामि नमौ सदा, घातिकर्म विनसाय ।
पाय चतुष्टय जो भयो, तीजो श्रीजिनराय ॥ अब इहां जहां-तहां अलौकिक गणित का प्रयोजन पाइए, तातै अलौकिक गणित कहिए है संदृष्टि इनिकी प्रागै संदृष्टि अधिकार विषै जानना ।
मान दोय प्रकार है, एक लौकिक एक अलौकिक । तहां लौकिक मान छह प्रकार - मान, उन्मान, अवमान, गणितमान, प्रतिमान, तत्प्रतिमान एवं छह प्रकार जानना । तहां पाइ माणी इत्यादिक मान जानना । ताखडी का तौल उन्मान जानना । चल इत्यादिक का प्रमाण (परिमाण) अवमान जानना । एक-दोय कौ आदि देकरि गणितमान जानना । चरिम तोला, मासा, इत्यादिक प्रतिमान जानना। घोडा का मोल इत्यादि तत्प्रतिमान जानना ।
बहुरि अलौकिक मान के च्यारि भेद है - द्रव्य मान, क्षेत्र मान, काल मान, भाव मान । तहा द्रव्य मान विष जघन्य एक परमाणु अर उत्कृष्ट सब पदार्थनि का परिमाण । क्षेत्र मान विषै जघन्य एक प्रदेश अर उत्कृष्ट सब अाकाश । काल मान विष जघन्य एक समय पर उत्कृष्ट तीन काल का समय समूह । भाव मान विपै जघन्य सूक्ष्म निगोदिया लब्धि अपर्याप्तक का लब्धि अक्षर ज्ञान अर उत्कृप्ट केवलज्ञान ।
___ बहुरि द्रव्य मान के दोय भेद - एक सख्या मान एक उपमा मान । तहा सख्या मान के तीन भेद - सख्यात, असख्यात, अनत । तहा संख्यात जघन्य, मध्यम, उत्कृप्ट ते तीन प्रकार है । बहुरि असख्यात है, सो परीतासख्यात, युक्तासख्यात, असख्यातासख्यात इनि तीनों के जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट भेद करि नव प्रकार है । बहुरि अनत है, सो परीतानत, युक्तानंत, अनंतानंत इनि तीनो के जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट भेद करि नव प्रकार है - ऐस सख्यामान के इकईस भेद भए । तिनि विप जघन्य मन्यात दोय सख्यामात्र है । इहां एक का गुणकार भागहार कीए किछ वृद्धि-हानि होड नाही, तातै दोय के ही भेद का ग्राहकपना है, एक के नाही है । बहुरि तीनि आदिकनि के मध्यम संख्यात का भेदपना है, तातै दोय ही को जघन्य मंन्यात