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________________ सम्पमानचन्द्रिका भाषाटोका ] [२११ असंख्यातवां भाग का भागहार थे, तिनि विर्ष एक-एक बार घटता हो है, असा क्रम जानना । सो बादर वायुकायिक पर्याप्त का जघन्य अवगाहन तै बादर वायुकायिक अपर्याप्त का उत्कृष्ट अवगाहन विशेष करि अधिक है। यातै बादर वायुकायिक पर्याप्त का उत्कृष्ट अवगाहन विशेष करि अधिक है । यातै बादर तेजकाय पर्याप्त का जघन्य अवगाहन पल्य का असंख्यातवां भाग गुणा है, यातै बादर तेजकाय अपर्याप्त का उत्कृष्ट अवगाहन विशेष अधिक है । यातै बादर तेजकायिक पर्याप्त का उत्कृष्ट अवगाहन विशेष करि अधिक है। यातै बादर अप्कायिक अपर्याप्त का जघन्य अवगाहन पल्य का असंख्यातवां भाग गुणा है । यातै बादर अप्कायिक अपर्याप्त का उत्कृष्ट अवगाहन विशेष करि अधिक है । यातै बादर अप्कायिक पर्याप्त का उत्कृष्ट अवगाहन विशेष अधिक है। यातै बादर पृथ्वी पर्याप्त का जघन्य अवगाहन पल्य का असंख्यातवां भाग गुणा है । यात बादर पृथ्वी अपर्याप्त का उत्कृष्ट अवगाहन विशेष अधिक है। यात बादर पृथ्वी पर्याप्त का उत्कृष्ट अवगाहन विशेष अधिक है । यात बादर निगोद पर्याप्त का जघन्य अवगाहन पल्य का असंख्यातवां भाग गुणा है। यातै बादर निगोद अपर्याप्त का उत्कृष्ट अवगाहन विशेष अधिक है। यातै बादर निगोद पर्याप्त का उत्कृष्ट अवगाहन विशेष अधिक है । यातै प्रतिष्ठित प्रत्येक पर्याप्त का जघन्य अवगाहन पल्य के असंख्यातवां भाग गुणा है । यातै प्रतिष्ठित प्रत्येक अपर्याप्त का उत्कृष्ट अवगाहन विशेष अधिक है । यातै प्रतिष्ठित प्रत्येक पर्याप्त का उत्कृष्ट अवगाहन विशेष अधिक है । असै सतरह अवगाहन स्थाननि को उलंघि पूर्वोक्त प्रकार अपवर्तन कीए सतरहवा बादर पर्याप्त प्रतिष्ठित प्रत्येक का उत्कृष्ट अवगाहन दोय बार पल्य का असख्यातवा भाग पर नव बार सख्यात का भाग जाको दीजिए, असा घनागुल प्रमाण हो है। बहुरि याते अप्रतिष्ठित प्रत्येक पर्याप्त का जघन्य अवगाहन पल्य का असख्यातवा भाग गुणा है, इहा भी अपवर्तन करना । बहुरि यात बेद्री पर्याप्त का जघन्य अवगाहन पल्य का असंख्यातवा भाग गुणा है । इहा भी अपवर्तन कीए पल्य का असंख्यातवा भाग का भागहार था, सो दूरि होइ घनागुल का नव बार सख्यात का भागहार रह्या । बहुरि यातै तेद्री, चौद्री, पचेद्री पर्याप्तनि के जघन्य अवगाहन ते क्रम तै पूर्व-पूर्व ते सख्यात-सख्यात गुरणे है । यातै तेद्री अपर्याप्त का उत्कृष्ट अवगाहन सख्यात गुणा है । यातै चौद्री अपर्याप्त का उत्कृष्ट अवगाहन सख्यात गुणा है । यातै बेद्री अपर्याप्त का उत्कृष्ट अवगाहन संख्यात गुणा है । यातै अप्रतिष्ठित प्रत्येक अपर्याप्त का उत्कृष्ट अवगाहन सख्यात
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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