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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
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पुण्णजहण्णं तत्तो, वरं मयुण्णस्स पुण्णउस्कस्स। बीपुण्णजहण्णो त्ति, असंखं संखं गुणं तत्तो ॥१०॥
पूर्णजघन्यं ततो, वरमपूर्णस्य पूर्णोत्कृष्टं ।
द्विपूर्णजघन्यमिति असंख्यं संख्यं गुणं ततः ॥१०॥ टीका - ताके श्रागै दशवां कोठा विष प्राप्त पर्याप्त पांच जीवसमासनि की जघन्य अवगाहना के स्थान है । बहुरि तहां ते आगै ग्यारहवां कोठा विष अपर्याप्त पांच जीवसमासनि की उत्कृष्ट अवगाहना के स्थान है। बहुरि ताके आगै बारहवां कोठा विर्षे पर्याप्त पंच जीवसमासनि की उत्कृष्ट अवगाहना के स्थान है । जैसे ए कहे स्थान, तिनि विर्षे प्रथम कोठा विष प्राप्त सूक्ष्म अपर्याप्त निगोदिया जीव की जघन्य अवगाहना तै लगाइ दशवा कोठा विर्षे प्राप्त बादर पर्याप्त द्वीद्रिय की जघन्य अवगाहना पर्यत ऊपरि की पंक्ति संबंधी गुणतीस अवगाहना के स्थान, ते असंख्यातअसंख्यात गुणा क्रम लीए है। बहुरि तिसते आगै बादर पर्याप्त पंचेद्रिय की उत्कृष्ट अवगाहना पर्यत तेरह अवगाहना के स्थान, ते संख्यातगुणां, सख्यातगुणां अनुक्रम लीए है; असा जानना ।
सुहमेदरगुरणगारो, आवलिपल्ला असंखभागो दु । सहाणे सेढिगया, अहिया तत्थेकपडिभागो॥१०१॥
सूक्ष्मेतरगुणकार, आवलिपल्यासंख्येयभागस्तु ।
स्वस्थाने श्रेरिणगता, अधिकास्तत्रैकप्रतिभागः ॥१०१॥ टीका - इहां गुणतीस स्थान असख्यातगुणे कहे, तिनिविर्ष जे सूक्ष्म जीवनि के अवगाहना के स्थान है, ते प्रावली का असंख्यातवा भाग करि गुणित जानने । पूर्वस्थान को घनावली१ का असंख्यातवां भाग करि तहां एक भाग करि गुण उत्तर स्थान हो है । बहुरि जे बादर जीवनि के अवगाहन के स्थान है, ते पल्य का असख्यातवां भाग करि गुरिणत है । पल्य का असख्यात भाग करि तहां एक भाग करि पूर्वस्थान को गुणे, उत्तर स्थान हो है। जैसे स्वस्थान विष गुणकार है, या प्रकार असंख्यात का गुणकार विष भेद है, सो देखना । बहुरि नीचली दूसरी, तीसरी पंक्ति
१. अप्रति मे 'प्रावली' है, वाकी चार प्रतियो मे 'धनावली' है।