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________________ १४४ ] [ गोम्मटमार जीवकाण्ड गाथा ४६ ____बहुरि द्वितीय समय संबधी परिणाम पुज का प्रथम खड है, सो प्रथम समय संबंधी प्रथम खंड ते अनुकृष्टि चय करि अधिक है। काहै ते ? जातै द्वितीय समय संबंधी समस्त परिणाम पुजरूप जो सर्वधन, तामै पूर्वोक्त प्रमाण अनुकृष्टि का चयधन घटाएं अवशेष रहै, ताको अनुकृष्टि का भाग दीएं, सो प्रथम खंड सिद्ध हो है। वहरि इस द्वितीय समय का प्रथम खंड विष एक अनुकृष्टि चय की जोडे, द्वितीय समय संबंधी परिणामानि का द्वितीय खंड का प्रमाण हो है। ऐसे तृतीयादिक खंड एक-एक अनुकृष्टि चय करि अधिक स्थापन करने । तहा एक घाटि अनुकृप्टि गच्छ, प्रमाण चय द्वितीय समय परिणाम का प्रथम खंड विष जोडै, द्वितीय समय संबंधी अंत खंड का प्रमाण हो है। यामै एक अनुकृष्टि चय घटाएं द्वितीय समय संबंधी द्विचरम खंड का प्रमाण हो है । बहुरि इहा द्वितीय समय का प्रथम खड पर प्रथम समय का द्वितीय खंड, ए दोऊ समान है । तैसे ही द्वितीय समय का द्वितीयादि खंड अर प्रथम समय का तृतीयादि खण्ड दोऊ समान हो है । इतना विशेप द्वितीय समय का अंत खंड, सो प्रथम समय का खंडनि विर्षे किसीही करि समान नाही । वहुरि याके आगे ऊपरि तृतीयादि समयनि विष अनुकृष्टि का प्रथमादिक खंड, ते नीचला समय सम्बन्धी प्रथमादि अनुकृष्टि खंडनि ते एक-एक अनुकप्टि चय करि अधिक है। असे अधःप्रवृत्तकरण काल का अंत समय पर्यन्त जानने । तहां अन्त समय का समस्त परिणामरूप सर्वधन विषे अनुकृष्टि का चयधन को घटाई, अवशेप को अनुकृप्टि गच्छ का भाग दीएं, अत समय सम्बन्धी परिणाम का प्रथम अनुकृष्टि खड हो है । यामै एक अनुकृष्टि चय जोडै, अंत समय का द्वितीय अनुकृप्टि खड हो है । असे तृतीयादि खण्ड एक-एक अनुकृप्टि चय करि अधिक जानने। तहां एक घाटि अनुकृप्टि गच्छ प्रमाण अनुकृप्टि चय अन्त समय सम्बन्धी परिणाम का प्रथम खण्ड विष जोडै, अंत समय सम्बन्धी अंत अनुकृष्टि खण्ड के परिणाम पुज का प्रमाण हो है । वहुरि यामैं एक अनुकृप्टि चय घटाए, अन्त समय सम्वन्धी द्विचरम खण्ड के परिणाम पुज का प्रमाण हो है । असे अत समय संबंधी अनुकृष्टि खड, ते अनुकृष्टि के गच्छ प्रमाण है ; ते वरोवरि आगे-आगे क्रम तै स्थापने । वहुरि अत समय सवधी अनुकृप्टि का प्रथम बड विप एक अनुकृष्टि चय घटाएं, अवशेप द्विचरम समय संबंधी प्रथम खड का परिणाम पुंज का प्रमाण हो है । बहुरि यामै एक अनुकृप्टि चय जोडे, द्विचरम समय संबधी द्वितीय खंड का परिणाम पुज हो है । बहुरि असे ही तृतीयादि खड एक-एक चय अविक जानने । तहां एक घाटि अनुकृष्टि गच्छ प्रमाण अनुकृष्टि चय द्विचरम
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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