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________________ अन्तर्दर्शन उपाध्याय कविरत्न श्री अमरचन्द्रजी द्वारा लिखित सामायिक सूत्र में सम्पूर्ण पढ गया हूँ । इसमे मूल पाठ तथा उसका संस्कृतानुवाद ( संस्कृत शब्दच्छाया) दोनो ही है । मूल पाठ के प्रत्येक शब्द का हिन्दी मे अर्थ तो है ही, साथ ही प्रत्येक सूत्र के अन्त मे उसका अखंड संस्कृत भावार्थ भी दिया गया है । और भी, कविरत्न जी ने हिन्दी - विवेचन के रूप मे सप्रमाण युगोपयोगी तथा जीवन-स्पर्शी शास्त्रीय चर्चाप्रो एवं विवेचनाओ से इसे अध्ययनशील हृदयो के लिए प्रत्यत ही उपयोगी रूप दिया है। संप्रदाय के सीमित क्षेत्र के बीच रहते हुए भी कविरत्नजी की विवेचना प्राय साम्प्रदायिक भावना से शून्य है, व्यापक है । तुलनात्मक पद्धति का अनुसरण कर उन्होने इस ओर एक नया प्रकाश दिया है । इस प्रकार तुलनात्मक पद्धति तथा व्यापक भाव की दृष्टि का अनुसरण देखकर मुझे सविशेष प्रमोद होता है । कविरत्न जी का जैन - जगत् मे साधुत्व के नाते एक विशेष स्थान है । फिर भी उन्होने विनयशील स्वभाव, विद्यानुशीलन की प्रवृत्ति, विवेक दृष्टि और साम्प्रदायिक विचारो के सहारे अपनेआप को और भी ऊपर उठाया है । मेरा और उनका अध्यापकअध्येता का घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है, प्रत जितना में स्वय उन्हे नजदीक से समझ पाया हूँ, उतना ही यदि उनके अनुयायी भी अपने गुरु कविरत्न जी को समझने की चेष्टा करे, तो निश्चय ही वे अपना और अपनी सम्प्रदाय का श्र ेय-साधन करने मे एक सफल पार्ट अदा करेंगे । प्रत्येक प्राणी मे स्वरक्षण-वृत्ति का भाव जन्म से होता है। इस स्वरक्षण - वृत्ति को सर्वरक्षण-वृत्ति में बदल देना हो सामायिक का प्रधान
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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