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________________ ७० सामायिक-प्रवचन जीवन के आदर्शों को भूल कर केवल भविष्य के ही सुनहले स्वप्न देखते रहते है। दिन पर दिन इन्ही विचारो मे वीत जाते है कि किस प्रकार लखपति बनूं? सुन्दर महल, बाग आदि कैसे वनाऊँ ? समाज मे पूजा, प्रतिष्ठा किस प्रकार प्राप्त करूँ ? आदि उचित-अनुचित का कुछ भी विचार किए बिना विलासी जीव हर प्रकार से अपना स्वार्थ गाठना चाहते है । रौद्र ध्यान के चार प्रकार 'रौद्र' शब्द 'रुद्र' से निष्पन्न हुआ है। रुद्र का अर्थ है-ऋ र, भयकर। जो मनुष्य क्रूर होते है, जिनका हृदय कठोर होता है वे बडे ही भयकर एव क्रूर विचार करते है। उनके हृदय मे हमेशा द्वेप की ज्वालाएँ भडकती रहती हैं। उक्त रौद्र ध्यान के शास्त्रकारो ने चार प्रकार बतलाए है (१) हिसानन्द-अपने से दुर्बल जीवो को मारने मे, पीडा देने मे, हानि पहुँचाने मे आनन्द अनुभव करना, हिसानन्द दुर्ध्यान है। इस प्रकार के मनुष्य बडे ही क्रूर होते है । ऐसे लोग व्यर्थ ही हिसाकार्यों का समर्थन करते रहते है। (२) मृषानन्द कुछ लोग असत्य भापण मे बडी ही अभिरुचि रखते है। इधर-उधर मटरगश्ती करना, झूठ बोलना, दूसरे भोले भाइयो को भुलावे मे डाल कर अपनी चतुरता पर खुश होना, हर समय असत्य कल्पनाएँ घडते रहना, सत्य धर्म की निन्दा और असत्य आचरण की प्रशसा करना, मृषानन्द दुर्ध्यान मे सम्मिलित है। (३) चौनिन्दबहुत से लोगो को हर समय चोरी-छप्पी की आदत होती है। वे जब कभी सगे सम्वन्धी के या मित्रो के यहाँ आते-जाते है, तव वहाँ कोई भी सुन्दर चीज देखते ही उनके मुंह मे पानी भर आता है । वे उसी समय उसको उडाने के विचार मे लग जाते है । हजारो मनुष्य इस दुर्विचार के कारण अपने महान् जीवन को कलकित कर डालते है । रात-दिन चोरी के सकल्प-विकल्पो मे ही अपना अमूल्य समय बर्बाद करते रहते है। . (४) परिग्रहानन्द प्राप्त परिग्रह के सरक्षण मे और अप्राप्त परिग्रह के प्राप्त करने मे मनुष्य के समक्ष वडी ही जटिल समस्याएं आती
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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