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सामायिक प्रवचन
का त्याग, ब्रह्मचर्य यादि महान् गुण होने चाहिए, उनकी छाया सामायिक करते समय श्रावक के ग्रन्तस्तल मे भी प्रतिभासित हो जाती है । ग्राचार्य भद्रवाहु स्वामी कहते हैं.
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सामाग्रम्म उकए,
समरणो इव सावश्रो हवड जम्हा ।
एएण कारण,
वहुमो सामाइय
कुज्जा ॥
- श्रावश्यक-निर्युक्ति ८०२
भी
- सामायिक व्रत भली-भाँति ग्रहरण कर लेने पर श्रावक साधु जैसा हो जाता है, ग्रत प्राध्यात्मिक उच्च दशा को पाने के लिए अधिक से अधिक सामायिक करना चाहिए।
सामाइय-वय-जुत्तो,
जाव मणो होड नियमसजुत्तो ।
छिन्नइ ग्रमुह् कम्म,
सामाइय जत्तिया वारा ॥
- चचल मन को नियत्रण में रखते हुए जब तक सामायिकव्रत की ग्रखण्डधारा चालू रहती है, तब तक अशुभ कर्म वरावर क्षीण होते रहते हैं ।
पाठक सामायिक का महत्त्व अच्छी तरह समझ गए होगे । सामायिक की साधना मे सलग्न होना वडा ही कठिन है, परन्तु जत्र वह सलग्न हो जाता है, तब फिर वेडा पार है । ग्राचार्यो का कहना है कि देवता भी अपने हृदय मे सामायिक व्रत स्वीकार करने की तीव्र अभिलापा रखते हैं, और भावना भाते है कि 'यदि एक मुहूर्तभर के लिए भी सामायिक व्रत प्राप्त हो सके, तो यह मेरा देव जन्म सफल हो जाए
"
वेद है कि देवता भावना भाते हुए भी सामायिक व्रत प्राप्त नही कर सकते | चारित्र मोह के उदय के कारण सयम का पथ न कभी देवताओ ने अपनाया है, और न अपना सकेंगे । जैन शास्त्र की दृष्टि से देवनाग्रो की ग्रपेक्षा मानव ग्रविक ग्राध्यात्मिक भावना का