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सामायिक : एक विश्लेषण
सामायिक का शब्दार्थ
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सामायिक शब्द का अर्थ बडा ही विलक्षण है । व्याकरण के नियमानुसार प्रत्येक शब्द का भाव उसी मे अन्तर्निहित रहता है । अतएव सामायिक शब्द का गंभीर एव उदार भाव भी उसी शब्द मे छपा हुआ है । हमारे प्राचीन जैनाचार्य हरिभद्र, मलयगिरि आदि ने भिन्न-भिन्न व्युत्पत्तियो के द्वारा, वह भाव, सक्षेप मे इस भाँति प्रकट किया है
(१) समो - रागद्वेषयोरपान्तरालवर्ती मध्यस्थ, इरण गतौ, अयन थ्यो गमननित्यर्थ, समस्य प्रय समाय -- समीभूतस्य सतो मोक्षाध्वनि प्रवृत्ति, समाय एव सामायिकम् । १
रागद्व ेष मे मध्यस्थ रहना 'सम' है, सम ——— ग्रर्थात् माध्यथ्यभावयुक्त साधक की मोक्षाभिमुखी प्रवृत्ति सामायिक है ।"
(२) " समानि - ज्ञानदर्शनचारित्राणि तेषु अयन गमन समाय', स एव सामायिकम्" मोक्ष मार्ग के साधन ज्ञान, दर्शन और
१ आवश्यक मलयगिरीवृत्ति, गा० ८५४ ।
२ तुलना कीजिए विशेषावश्यक भाप्य की गाथाओ से
रागद्दोसविरहिओ समो त्ति अयरण अयो त्ति गमरण ति । समगमरण ति समाओ स एव सामाइय नाम ||३४७७ ॥
३ अहवा समाइ सम्मत्त - नारण चरणाइ तेसु तेहि वा । अयण अओ समाओ स एव
सामाइय नाम ।। ३४७६ ॥