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सामायिक-प्रवचन
तीर्थंकर मुनि-दीक्षा लेते समय सर्वप्रथम सामायिक साधना की प्रतिज्ञा ग्रहण करते है।
और, केवलज्ञान प्राप्त हो जाने के बाद प्रत्येक तीर्थंकर सर्वप्रथम जनता को इसी महान् व्रत का उपदेश करते है
सामाइयाइया वा वयजीवारिणकाय भावरणा पढम । एसो धम्मोवामो जिणेहिं सब्बेहि उवइहो ।
-आवश्यक-नियुक्ति २७१ सामायिक को चौदह पूर्व का सारभूत ( पिंड ) बतलाते हुए प्राचार्य जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण कहते है-~"सामाइय सखेवो चोद्दसपुत्वत्थ पिंडो ति"
-विशे० भा० गा० २७६६ जैन जगत् के ज्योतिर्धर विद्वान् श्री यशोविजयजी सामायिक को सपूर्ण द्वादशागरूप जिनवाणी का रहस्य बताते हुए यही बात इस प्रकार कहते हैं"सकलद्वादशाङ्गोपनिषद्भूतसामायिकमूत्रवत्"
-तत्त्वार्थ-टीका, प्रथम अध्याय अस्तु, मनुष्यता के पूर्ण विकास के लिए सामायिक एक सर्वोच्च साधन है । अत हम पाठको के समक्ष प्रस्तुत सामायिक के शुद्ध स्वरूप का विवेचन प्रस्तुत कर रहे है। * * *
सामाइयभावपरिणइ भावाओ जीव एव सामाइय ।
-प्रा०नि० २६३६ सामायिक क्या है ? आत्मा की स्वभाव-परिणति ! इस दृष्टि से आत्मा (जीव) ही सामायिक है। * . .
राज्य में अकरणिज्ज पावसम्म ति कट्ट मामाइय चरित्त पटिवज्जइ ।