________________
सामायिक-प्रवचन
२४
Mr आवश्यक ना, गन्दा दण्ड में सा
नवाले सिनेमा
भाषण आदि का तथा किसी को चिढाने आदि व्यर्थ का चेष्टाओ का त्याग करना आवश्यक है। कामवासना को उद्दीप्त करनेवाले सिनेमा देखना, गन्दे उपन्यास पढना, गन्दा मजाक करना, व्यर्थ ही शस्त्रादि का संग्रह कर रखना आदि भी अनर्थ-दण्ड मे सम्मिलित है।
चार शिक्षा व्रत
मह कर रखना अान्दा मजाक करना
(१) सामायिक व्रत-दो घडी तक हिंसा, असत्य अादि के रूप मे पापकारी व्यापारो का परित्याग कर समभाव मे रहना सामायिक है। राग-द्वेप बढाने वाली प्रवृत्तियो का त्याग कर मोह-माया के दु सकल्पो को हटाना, सामायिक का मुख्य उद्देश्य है ।
(२) देशावकाशिक व्रत-जीवन-भर के लिए स्वीकृत दिशा परिमाण मे से तथा भोगोपभोग परिमाण मे से और भी प्रतिदिन देशान्तर गमनादि एव भोगोपभोग की सीमा कम करते रहना, देशावका शिक व्रत है । देशावकाशिक व्रत का उद्देश्य जीवन को नित्य-प्रति इधर-उधर गमनादि की एव भोगोपभोग की आसक्ति-रूप पाप-क्रियायो से वचाकर रखना है।
(३) पौषध व्रत-एक दिन और एक रात के लिए अब्रह्मचर्य, पुप्पमाला आदि सचित्त, शरीरशृङ्गार, शस्त्र-धारण आदि सासारिक पाप-युक्त प्रवृत्तियो को छोड कर, एकात स्थान मे साधुवृत्ति के समान धर्म-क्रिया मे प्रारूढ रहना, पौषध व्रत है। यह धर्म-साधना निराहार भी होती है, और शक्ति न हो, तो अल्प प्राशुक भोजन के द्वारा भी की जा सकती है। परिस्थिति के अनुसार एक अहोरात्र से कम समय मे भी हो सकती है।
(४) अतिथि विभाग प्रत-साधु, श्रावक आदि योग्य सदाचारी साधको को शुद्ध आहार आदि का उचित दान करना ही प्रस्तुत व्रत का स्वरूप है। सग्रह ही जीवन का उद्देश्य नही है। सग्रह के बाद यथावर अतिथि की सेवा करना भी मनुष्य का महान् कर्तव्य है। अतिथि-मविभाग का एक लघु रूप, हर किसी अभावग्रस्त गरीव की अनुकम्पा-बुद्धि से योग्य सेवा करना भी है, यह ध्यान मे रहना चाहिए।