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सामायिक सूत्र
लाखो वर्षों बाद श्राज भी भक्त - जनता के हृदयो को महका रही है । आज ही नही, भविष्य मे भी हजारो वर्षो तक इसी प्रकार महकाती रहेगी । महापुरुपो के जीवन की सुगन्ध को न दिशा ही श्रवच्छिन्न कर सकती है, और न काल ही । जिस प्रकार पुण्डरीक श्वेत होता है, उसी प्रकार भगवान् का जीवन भी वीतराग भाव के कारण पूर्णतया निर्मल श्वेत होता है । उसमे कपायभाव का जरा भी रग नही होता । पुण्डरीक के समान भगवान् भी निस्वार्थ - भाव से जनता का कल्याण करते हैं, उन्हें किसी प्रकार की भी सासारिक वासना नहीं होती । कमल ग्रज्ञान - श्रवस्था मे ऐसा करता है, जब कि भगवान् ज्ञान के विमल प्रकाश मे निष्काम भाव से जन-कल्याण का कार्य करते है । यह कमल की अपेक्षा भगवान् की उच्च विशेषता है । कमल के पास भ्रमर ही श्राते है, जब कि तीर्थ करदेव के श्राध्यात्मिक जीवन की सुगन्ध से प्रभावित होकर विश्व के भव्य प्राणी उनके चरणो मे उपस्थित हो जाते है । कमल की उपमा का एक भाव और भी है । वह यह है कि भगवान् ससार मे रहते हुए भी ससार की वासनात्रो से पूर्णतया निर्लिप्त रहते हैं, जिस प्रकार पानी से लबालब भरे हुए सरोवर मे रह कर भी कमल पानी से लिप्त नही होता । कमलपत्र पर पानी की बूँद अपनी रेखा नही डाल सकती । यह कमल की उपमा ग्रागमप्रसिद्ध उपमा है ।
गन्धहस्ती
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भगवान् पुरुषो मे श्रेष्ठ गन्ध-हस्ती के समान है । सिंह की उपमा वीरता की सूचक है, गन्ध की नही । और पुण्डरीक की उपमा गन्ध की सूचक है, वीरता की नही । परन्तु, गन्धहस्ती की उपमा सुगन्ध और वीरता दोनो की सूचना देती है ।
गन्धहस्ती एक महान् विलक्षण हस्ती होता है । उसके गण्डस्थल से सदैव सुगन्धित मद जल वहता रहता है और उस पर भ्रमर-समूह गूंजते रहते है | गन्ध हस्ती की गन्ध इतनी तीव्र होती है कि युद्ध भूमि मे जाते ही उसकी सुगन्धमात्र से दूसरे हजारो हाथी त्रस्त होकर भागने लगते है, उसके समक्ष कुछ देर