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प्रतिज्ञा-सूत्र
और होती हैं, परन्तु गृहस्थ की परिस्थितिया कुछ ऐसी हैं कि वह ससार मे रहते हुए पूर्ण त्याग के उग्र पथ पर नही चल सकता । श्रत साधुत्व की भूमिका मे लिए जाने वाले - मन से अनुमोदूँ नही, वचन से अनुमोदू नही, काया से अनुमोदू नही - उक्त तीन भगो के सिवा शेष छह भगो से ही अपने जीवन को पवित्र एव मगलमय बनाने के लिए सयम-यात्रा का ग्रारंभ करता है । यदि ये छह भग भी सफलता के साथ जीवन मे उतार लिए जाए, तो वेडा पार है । सयम साधना के क्षेत्र मे छोटी और वढी साधना का उतना विशेष मूल्य नही है, जितना कि प्रत्येक साधना को सच्चे हृदय से पालन करने का मूल्य है । छोटी-से-छोटी साधना भी यदि हृदय की शुद्ध भावना के साथ, ईमानदारी के साथ पालन की जाए, तो वह जीवन मे पवित्रता का मंगलमय वातावरण उत्पन्न कर देती है, माया के बन्धनो को तोड डालती है ।
'भते' के अर्थ
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वस्तु
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यह तो हुआ सामायिक की - स्थिति के सम्बन्ध मे सामान्य विवेचन | अब जरा प्रस्तुत - सूत्र के विशेप स्थलो पर भी कुछ विचारचर्चा कर लें । सर्वप्रथम प्रतिज्ञा सूत्र का 'करेमि भते' -रूप प्रारंभिक आपके समक्ष है । गुरुदेव के प्रति असीम श्रद्धा और भक्ति भाव से भरा शब्द है यह । 'भदि कल्याणे सुखे च' धातु से 'भते' शब्द वनता है । 'भते' का संस्कृत रूप 'भदत' होता है । भदत का अर्थ कल्याणकारी होता है । गुरुदेव से बढ कर ससार-जन्य दुख से त्राण देने वाला और कौन भदत है ? 'भते' के 'भवात' तथा 'भयात' – ये दो संस्कृत रूपान्तर भी किए जाते है । 'भवात' का अर्थ है-भव यानी ससार का अन्त करने वाला । श्रौर भयात का अर्थ है- भय यानी डर का अन्त करने वाला । गुरुदेव की शरण मे पहुँचने के बाद भव और भय का क्या अस्तित्व ? 'भते' का अर्थ भगवान् भी होता है । पूज्य गुरुदेव के लिए 'भते' - 'भगवान्' शब्द का सम्बोधन भी अति सुन्दर है ।
यदि 'भते' से गुरुदेव के प्रति सम्बोधन न लेकर हमारी प्रत्येक क्रिया के साक्षी एव द्रष्टा सर्वज्ञ वीतराग भगवान् को सम्वोधित