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सामायिक-सूत्र
सर्वविरतिः देशविरति
सामायिक मे जो पापचार का त्याग बतलाया गया हैं, वह किस कोटि का है ? उक्त प्रश्न के उत्तर मे कहना है कि मुख्य रूप से त्याग के दो मार्ग है.---'सर्व-विरति और देश-विरति ।' सर्व-विरति का अर्थ है-'सर्व अश मे त्याग ।' और देश-विरिति का अर्थ है-'कुछ अश मे त्याग ।' प्रत्येक नियम के तीन योग-मन, वचन, शरीर और अधिक-से-अधिक नौ भग[ प्रकार होते है । अस्तु, जो 'त्याग पूरे नौ भगो से किया जाता है, वह सर्व-विरति और जो नौ मे से कुछ भी कम पाठ, सात, या छह आदि भगो से किया जाता है, वह देश-विरति होता है। साधु की सामायिक सर्व-विरति है, अत वह तीन करण और तीन योग के नौ भगो से समस्त पाप-व्यापारो का यावज्जीवन के लिए त्याग करता है। परन्तु, गृहस्थ की सामायिक देश-विरति है, अत वह पूर्ण त्यागी न वनकर केवल छह भगो से अर्थात् दो करण तीन योग से दो घडी के लिए पापो का परित्याग करता है। इसी बात को लक्ष्य मे रखते हुए प्रतिज्ञा-पाठ मे कहा गया कि 'दुविह तिविहेणं ।' अर्थात सावद्य योग न स्वय करूंगा और न दूसरो से कराऊँगा, मन, वचन, एव शरीर से ।
दो करण और तीन योग के समिश्रण से सामायिक-रूप प्रत्यान्यानविधि के छह प्रकार होते हैं
१-मन से कर नही। २-मन से कराऊ नही।
-वचन से कल नहीं। ४-बचन मे कगों नहीं। ५.~-माया से कम नहीं। ६-माया ने कराऊं नहीं।
मान्यीय पग्भिापा मे उक्त छह प्रकारो को पटगेटि के नान में लिया गया है। माधु पानामायिक यत नव कोटि मे होता है, उसमें मावध व्यापार का अनुमोदन तब भी त्यागने के लिए तीन कोटियाँ