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________________ २१४ धम्म == - धर्मनाथ च = ग्रौर सति शान्ति को वदामि = वन्दना करता [ ४ ] कुंथ = कुन्थु अरं=अरनाथ च = श्रौर मल्लि = मल्लि मुणिसुव्वय मुनिसुव्रत च = और नमिजिणनमि जिनको = तह तथा - Phcc वद्धमाण च= वर्द्ध मान को भी वदामि = वन्दना करता हूँ [ ५ ] एव = इस प्रकार भए = मेरे द्वारा पसीयंतु = प्रसन्न हो [ ६ ] वदे=वन्दन करता हूँ और रिट्ठनेमि = अरिष्ट नेमि बोहिलाभ = बोधि- सम्यग्धर्म का लाभ पास = पार्श्वनाथ उत्तम श्र ेष्ठ समाहिवर = श्रेष्ठ समाधि दितु = देवे जे = जो ए= ये लोगस्स = लोक मे से मुक्त चउवीसपि = चौवीसो ही जिवरा = जिनवर तित्ययरा = तीर्थ कर मे=मुझ पर सामायिक सूत्र उत्तमा= उत्तम फित्तिय = कीर्तित = स्तुत वदिय = वन्दित महिया = पूजित सिद्धा तीर्थकर है, वे आरुग्ग=ग्रारोग्य = ग्रात्म स्वास्थ्य [ ७ ] च'देसु = चन्द्रो से भी - निम्मलयरा = विशेष निर्मल आइच्चेसु = सूर्यो से भी अहिय = अधिक अभित्यु = स्तुति किए गए वियरयमला = पाप मल से रहित पयासयरा = प्रकाश करने वाले पहीणजरमरणा=जरा और मृत्यु गरवर = महासागर के समान गम्भीरा गम्भीर सिद्धा = सिद्ध भगवान् मम = मुझ को सिद्धि-सिद्धि, मुक्ति दिसतु = देवे भावार्थ उद्द्योत - प्रकाश करने वाले, अखिल विश्व मे धर्म का घर्मतीर्थ की स्थापना करने वाले, ( राग द्वेष के ) जीतने वाले,
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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