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________________ १८६ [ गुरुदेव के प्राज्ञा देने पर ] इच्छ= आज्ञा प्रमाण है इच्छामि = चाहता हूँ पडिक्क मिउं = निवृत्त होने को [ किस से 2] इरियावहियाए = ईर्यापथ सम्बन्धिनी विराहणाए - विराधना से [विराधना किन जीवो की, और किस तरह ?] गमरणागमरणे = जाने-आने मे पाणकमण े = किसी प्राणी को दबाने से बीक्कमण े बीज को दवाने से हरियक्कमण = वनस्पति को दबाने से ओसा = प्रोस को उत्तिग= कीडी ग्रादि के बिल को पणग=पाँच वर्ण की काई को दग= जल को = को मट्टी - मिट्टी को मक्कडा-सताणा=मकड़ी के जालो संकमण े =कुचलने से, मसलने से [उपसहार] मे मैने जे == जो जीवा = जीव विराहिया = पीडित किए हो [ कौन से जीव ? ] एगिदिया = एक इद्रिय वाले as दिया = दो इन्द्रिय वाले तेइ दिया = तीन इद्रिय वाले चरिदिया = चार इन्द्रिय वाले पंचिदिया = पाँच इन्द्रिय वाले [ किस तरह पीडित किए हो ? ] अभिया= सामने से श्राते रोके हो वत्तिया = धूल आदि से ढके हो लेसिया = परस्पर मसले हो संघाइया = इकट्ठे किए हो सघट्टिया = छ ुए हो परियाविया = परितापना दी हो किलामिया = थकाये हो उद्देविया = हैरान किए हो ठाणाश्रो = एक स्थान से ठाण = दूसरे स्थान पर संकामिया = रक्खे हो जीवियाओ जीवन से बवरोविया = रहित किए हो तस्स = - उसका सामायिक सूत्र वुक्कडं = दुष्कृत-पाप मि=मेरे लिए मिच्छा = निष्फल हो भावार्थ भगवन् ! इच्छा के अनुसार प्राज्ञा दीजिए कि मैं ऐर्यापथिकीगमन मार्ग मे अथवा स्वीकृत धर्माचरण मे होने वाली पाप-क्रिया का प्रतिक्रमण करू ? [ गुरुदेव की ओर से प्रज्ञा मिल जाने पर कहना चाहिए कि ] भगवन्, आज्ञा प्रमाण है ।
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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