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________________ १७५ गुरुवन्दन - सूत्र अर्थ है, एक नही । व्याकरण - शास्त्र की गभीरता मे उतरते ही इन शब्दों की महत्ता पूर्ण रूप से प्रकट हो जायगी । 'वदामि' का अर्थ वन्दन करना है । वन्दन का अर्थ स्तुति है । मुख से गुण-गान करना, स्तुति है । सद्गुरु को केवल हाथ जोडकर वन्दन कर लेना ही पर्याप्त नही है। गुरुदेव के प्रति अपनी वारणी को अर्पण कीजिए, उनकी स्तुति के द्वारा वारणी के मल को भी घोकर साफ कीजिए । किसी श्र ेष्ठ पुरुष को देखकर चुप रहना, उसकी स्तुति में कुछ भी न कहना, वाणी की चोरी है । जो साधक वारणी का इस प्रकार चोर होता है, जो गुणानुरागी नही होता है, जो प्रमोद भावना का पुजारी नही होता है, वह प्राध्यात्मिक विभूति का किसी प्रकार भी अधिकारी नही हो सकता । 1 'नमसामि' का अर्थ नमस्कार करना है । नमस्कार का अर्थ पूजा है, पूजा का अर्थ प्रतिष्ठा है, और प्रतिष्ठा का अर्थ है - उपास्य महापुरुष को सर्वश्रेष्ठ समझना, भगवत्स्वरूप समझना । जब तक साधक के हृदय में श्रद्धा की बलवती तरग प्रवाहित न हो सद्गुरू को सर्वश्र ेष्ठ समझने का शुभ सकल्प जागृत न हो, तब तक शून्य हृदय से यदि मस्तक को झुका भी दिया, तो क्या लाभ ? वह नमस्कार निष्प्राण है, जीवन शून्य है । इस प्रकार के नमस्कार से अपने शरीर को केवल पीडा ही देना है और कुछ लाभ नही । 'सत्कार' का अर्थ मन से आदर करना है । मन मे आदर का भाव हो, तभी उपासना का महत्त्व है, अन्यथा नही । गुरुदेव के चरणो मे वन्दन करते समय मन को खाली न रखिए, उसे श्रद्धा एव आदर के अमृत से भर कर गद्गद बनाइए । 'सम्मान' का अर्थ बहुमान देना है । जब भी कभी अवसर मिले गुरुदेव के दर्शन करना न भूलिए गुरुदेव के ग्रागमन को तुच्छ न समझिए, हजार काम छोड कर भी उनके चरणो मे वन्दन करने के लिए पहुचिये । सम्राट् भरत चक्रवर्ती ने जब सुना कि भगवान् ऋषभ देव अयोध्या नगरी के बाहर उद्यान मे पधारे है, तो पुत्र जन्म का महोसत्व छोडा, चक्र - रत्न पाने के कारण होने वाला अपना चक्रवर्ती पद - महोत्सव भी छोड़ा, और सब से पहले प्रभु के दर्शन को पहुंचा । इसे कहते है - वहुमान देना । यदि गुरुदेव का श्रागमन सुनकर भी
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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