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विश्व क्या है ?
प्रिय सज्जनो | यह जो कुछ भी विश्व प्रपच प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप मे आपके सामने है, यह क्या है ? कभी एकान्त मे बैठकर इस सम्बन्ध मे कुछ सोचा- विचारा भी है या नही ? उत्तर स्पष्ट है- 'नहीं' | आज का मनुष्य कितना भूला हुआ प्राणी है कि वह जिस ससार मे रहता सहता है, अनादिकाल से जहाँ जन्म-मरण की अनन्त कडियो का जोड-तोड लगाता आया है, उसी के सम्बन्ध मे नही जानता कि वह वस्तुत क्या है ?
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ग्राज के भोग-विलासी मनुष्यों का इस प्रश्न की ओर, भले ही लक्ष्य न गया हो, परन्तु हमारे प्राचीन तत्त्वज्ञानी महापुरुषो ने इस सम्बन्ध मे बडी ही महत्त्वपूर्ण गवेषणा की है। भारत के बडे-बडे दार्शनिको ने ससार की इस रहस्यपूर्ण गुत्थी को सुलझाने के प्रति स्तुत्य प्रयत्न किए है और वे अपने प्रयत्नो मे बहुत कुछ सफल भी हुए है ।
जैन दृष्टि
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परन्तु, प्राज तक की जितनी भी ससार के सम्बन्ध मे दार्शनिक विचारधाराएँ उपलब्ध हुई है, उनमे यदि कोई सबसे अधिक स्पष्ट, सुसगत एव तर्कपूर्ण स्पष्ट विचारधारा है, तो वह केवल ज्ञान एव केवल दर्शन के धर्ता, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी जैन तीर्थङ्करो की है । भगवान् ऋषभदेव आदि सभी तीर्थङ्करो का कहना है कि "यह विश्व चैतन्य और जड रूप से उभयात्मक है, अनादि है, अनन्त है । न कभी बना है और न कभी नष्ट होगा। पर्याय की दृष्टि से प्राकार-प्रकार का,