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नमस्कार-सूत्र
महामंत्र नमस्कार का सर्वप्रथम विश्वहितकर पद रिहत का है । हित का बहुप्रचलित एक अर्थ है - अन्त करण के काम, क्रोध, अहकार, लोभ श्रादि विकारो एव कर्म शत्रुओ पर पूर्ण विजय प्राप्त करने वाले महान आत्मा !"
अरिहत शब्द का एक दूसरा अर्थ है - परम पूजनीय अर्थात् वदनीय आत्मा । पूजा के योग्य, अथवा मुक्ति गमन की क्षमता - योग्यता से पूर्ण आत्मा ।
एक व्युत्पत्ति के द्वारा यह भी बताया गया है कि जिस आत्मा के ज्ञानालोक मे विश्व के समस्त चर अचर पदार्थ प्रतिभासित होते है, जिससे कुछ भी प्रच्छन्न- छिपा हुआ (रह X रहस्य ) नही है, ' वह महान् ग्रात्मा रिहत भगवान के पद पर प्रतिष्ठित होती है ।
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पांच पद का अर्थ
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दूसरा पद सिद्ध का है। सिद्ध अर्थात् – पूर्ण । जो महान् ग्रात्मा कर्म-मल से सर्वथा मुक्त हो कर, जन्म-मरण के चक्र से सदा के लिये छुटकारा पाकर, अजर अमर सिद्ध बुद्ध, मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं, वे सिद्ध पद से सम्बोधित होते है । सिद्ध होने के लिये पहले अरिहन्त की भूमिका तय करनी होती है । प्ररिहत हुए बिना सिद्ध नही बना जा सकता । लोक भाषा मे कहा जाए तो जीवन्मुक्त अरिहत होते हैं, और विदेह मुक्त सिद्ध ।
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अट्ठविह पिय कम्म, प्ररिभूय होइ सव्वजीवाण । त कम्ममरिहता, श्ररिहता तेण वुच्चति ॥
(क) अरिहति वदरण नमसगाइ, अरिहति पूअ सक्कार । सिद्धिगमरण च अरिहा, अरहता तेण वुच्चति ॥
हाल र ज तु, कम्मसे सिमट्ठा । सि घत ति सिद्धस्स, सिद्धत्तमुवजायइ ॥
- श्राव० नियुक्ति १४
- आव० निर्युक्ति ६१५
(ख) पूजामर्हन्तीत्यर्हन्त - अनुयोग द्वार वृत्ति, दशाश्रुत स्कघवृत्ति १
नास्ति रह प्रच्छन्न किञ्चिदपि येषा प्रत्यक्षज्ञानित्वात् तेऽरहन्त. । - स्थानाग वृत्ति ३।४
- आव० नियुक्ति ६१७