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सामायिक-प्रवचन
श्वासानुसधान
रूपस्थ ध्यान के समान श्वासानुसन्धान भी ध्यान की एक सुन्दर प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया मे साधक ध्यान को अपने श्वासोच्छवास पर केन्द्रित करता है । स्थिर आसन से बैठा हुया साधक अपनी वृत्तियों
और कल्पनाओ को श्वास पर केन्द्रित करके उसकी गणना करता रहता है। इसमे प्राणायाम की भांति खूव लम्बा सास लिया जाता है और फिर कुछ काल तक उसे रोककर धीरे-धीरे बाहर छोडा जाता है । श्वास को खीचते समय तथा छोडते समय उसकी गति पर ध्यान रखा जाता है और मन ही मन गिनती भी की जाती है कि कितने साँस खीचे और कितने छोड़े। मेरा अनुभव है कि इस क्रिया से मन काफी समय तक एक ही विपय पर रह सकता है। स्थिर होने से उसका सकल्प-वल भी प्रबल होता है और एकाग्रता की साधना भी सरल हो जाती है। ____ श्वासानुसन्धान की एक और भी सरल प्रक्रिया है । वह यह कि आसन का कोई खास प्रतिबन्ध नही है। किसी भी तरह, किसी भी मुद्रा में बैठकर या लेटकर श्वास पर ध्यान केन्द्रित किया जा सकता है। शरीर को ढीला छोड दीजिए, तनाव से मुक्त कर दीजिए और सहज भाव से प्राते जाते श्वास पर लक्ष्य रखिए । श्वास को रोकने और उसकी गणना करने की भी कोई आवश्यकता नहीं है। रोकने और गणना करने मे भी कुछ तनाव की स्थिति रहती है, अत उक्त सहज प्रक्रिया मे सहज भाव से आने-जाने वाले श्वासो पर केवल ध्यान रखा जाता है और कुछ नही ।
रूपातीत ध्यान
रूपातीत ध्यान का अर्थ है-रूप रग से अतीत, निरजन, निराकार आत्म-स्वरूप का चिन्तन करते हुए उसी मे लय हो जाना ।
अात्मा न इन्द्रिय है, न देह है और न मन है । ये सब भौतिक है, आत्मा अभौतिक । उसका कोई रूप नहीं है । वह तो द्रष्टा मात्र है, जो जगत् के समस्त दृश्यो को देख रहा है। प्रात्मा के इस द्रष्टा अर्थात् ज्ञानमय स्वरूप का चिन्तन करना रूपातीत ध्यान है । प्रात्मा की